MODERN PERIOD -BIHAR SPECIAL
- बिहार में यूरोपीय व्यापारियों का आगमन 17 सदीं में प्रारम्भ हुआ।
- बिहार में सर्वप्रथम पुर्तगाली आए , जिन्होंने अपना व्यापारिक केंद्र हुगली में स्थापित किया
- 17 वीं शताब्दी के मध्य तक डचों ने बिहार में कई स्थानों पर शोरे का गोदाम स्थापित किया।
- सर्वप्रथम डचों ने पटना कॉलेज की उत्तरी ईमारत में 1632 में डच फैक्ट्री की स्थापना किया
- 1662 में बंगाल में डच मामलों के प्रधान नथियस वैग्डेन बरुक ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब से व्यापार से सम्बंधित एक फरमान बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए प्राप्त किया।
- डच यात्री ट्रैवरनि 21 दिसंबर 1665 को पटना आया था उसके बाद उसने छपरा से यात्रा की। उस समय छपरा में शोरे का शुद्धिकरण का काम होता था
- 1848 में विद्रोही अफगान सरदार शमशेर खान ने पटना पर आक्रमण किया तथा फतुहा स्थित डच फैक्ट्री को लुटा।
- 1758 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार में शोरे के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।
- 25 नवंबर 1759 में वेदरा (बंगाल ) के निर्णायक युद्ध में डच , अंग्रेजों के हाथों पराजित हुए और उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया
- 10 जुलाई 1781 को पटना मिलिशिया के कमांडिंग ऑफिसर मेजर हार्डी ने पटना डच मालगोदाम को जब्त कर लिया
- 05 अगस्त 1781 को पैट्रिक हिट्ले ने डच फैक्ट्री की कमान मैक्सवेल से ग्रहण किया।
- 1824 -25 में डच व्यापारिक केंद्रों को अंतिम रूप से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी में सम्मिलित कर लिया गया।
- भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना फ्रेंकोइस मार्टिन के नेतृत्व में 1664 में की गयी
- मार्टिन ने 1674 में पांडिचेरी (पुदुचेरी ) की स्थापना की और जल्दी ही उसने माही, कराईकल तथा अन्य जगहों पर फ्रांसीसी व्यापारिक केंद्र खोले।
- इसके बाद फ्रांसीसी बंगाल आए और चंद्र नगर की स्थापना किया
- 1734 में फ्रांसीसीयों ने पटना में माल गोदाम की स्थापना किया
- अंग्रेजों ने मार्च 1757 में चंद्रनगर पर कब्ज़ा कर लिया
- 1761 में पांडिचेरी भी फ्रांसीसियों के हाथ से निकल गया और अंग्रेजों के कब्जे में आ गया
- 1763 में डेरिफ के संधि के तहत फ्रांसीसियों को अपना खोए हुए क्षेत्र वापस मिल गया
- 1793 में लार्ड कार्नवालिस के समय में फ्रांसीसियों की व्यापारिक गतिविधियां सिमटकर पांडिचेरी तक रह गयी थी
- 1814 तक बिहार तथा भारत में फ्रांसीसी गतिविधियां लुप्त हो गयी।
- भारत में आनेवाले यूरोपीय कंपनी में डेनमार्क का नाम सबसे अंत में आता है।
- 1774 -75 में पटना में डेनमार्क के कंपनी की स्थापना किया गया।
- मई 1775 में पटना की डेनिश कंपनी के प्रमुख जॉर्ज वर्नर ने बिहार में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर से फरमान की मांग की।
- डेनिश कंपनी मुख्य रूप से शोरे का व्यापार करती थी डच ईस्ट इंडिया कंपनी सूती वस्त्र , चीनी , शोरा , अफीम आदि का व्यापार करती थी।
- 1801 में ब्रिटेन और डेनमार्क के युद्ध शुरू हुआ जिसके परिणामस्वरूप पटना की डेनिस फैक्ट्री तथा सेरामपुर की कोठी को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया।
- 1802 में आमियाँ की संधि के अनुसार भारत में डेनमार्क के स्वामित्व वाले क्षेत्रों को वापस कर दिया गया।
- 1845 तक बिहार के सरे डेनिश माल गोदाम और फैक्ट्री अंग्रेजों के अधीन हो गया।
- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थायी माल गोदाम की स्थापना 1691 में पटना के गुलजारबाग में की गयी।
- 1664 में जॉब चरनाक को पटना की अंग्रेजी फैक्ट्री का प्रमुख नियुक्त किया गया।
- जॉब चरनाक ने 1686 में हुगली को लुटा।
- फर्खरूसियर के शासन काल में 1713 में पटना फैक्ट्री को बंद कर दिया गया लेकिन उसने पुनः 1717 में अंग्रेजों को बिहार तथा बंगाल में व्यापार करने की छूट दे दिया।
- पटना फैक्ट्री को अंग्रेजों ने 1718 में फिर खोला।
- 1757 के प्लासी (मालदा के पास ) युद्ध तथा 1764 के बक्सर युद्ध के परिणामस्वरूप बिहार ब्रिटिश आधिपत्य में पूर्ण रूप से आ गया।
- बक्सर युद्ध के बाद लार्ड क्लाइव और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के बीच 12 अगस्त 1765 को इलाहाबाद में एक संधि हुई , जिसके द्वारा कंपनी को बिहार , बंगाल तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।
- 16 अक्टूबर 1756 को मनिहारी के युद्ध में सिराजुदौला द्वारा शौकतजंग पराजित हुआ।
- अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारीयों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम की किलेबंदी प्रारम्भ की। इससे सिराजुदौला और अंग्रेजों के बिच तनाव उत्पन हो गया , जिसके परिणाम स्वरुप 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध हुआ , जिसमे अंग्रेज विजयी हुए और उन्होंने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया तथा उसके पुत्र मीरन को बंगाल का उप नवाब बनाया।
- 1760 में मीर कासिम अंग्रेजों की सहायता से बंगाल का नवाब बना , लेकिन अंग्रेजों से उसका सम्बन्ध अधिक दिनों तक मधुर नहीं रह सका।
- मेरे कासिम ने 1761 में अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर में स्थानांतरित कर लिया।
- पटना के अंग्रेज एजेंट ऐलिस को पटना पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया। ऐलिस ने 24 जून 1763 को पटना पर अधिकार कर लूटपाट किया तथा अनेक निर्दोषों की हत्या किया। विवश होकर मीर कासिम ने अंग्रेज एजेंट ऐलिस के विरुद्ध सैनिक करवाई शुरू किया। ऐलिस को बंदी बनाया गया और उसे मुंगेर लाया गया। पटना में मीर कासिम ने अंग्रेज अधिकारीयों का कत्लेआम किया और यह घटना 'पटना हत्याकांड 'के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- 2 सितम्बर 1763 को राजमहल के उदवा नाला के युद्ध में मीर कासिम अंग्रेजों के हाथों पराजित हुआ परन्तु मीर कासिम अंग्रेजों के हाथ नहीं आया और 4 दिसंबर 1763 को कर्मनाशा नदी पर करके अवध राज्य चला गया।
- पटना (उदवा नाला) के युद्ध में पराजय के बाद मीर कासिम अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने लगा। मीर कासिम ने अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के साथ पटना की ओर प्रस्थान किया। अंग्रेजी सेना का प्रधान कार्नक घबरा गया। कलकत्ता कौंसिल ने हेक्टर मुनरो को सेना पति बनाया। मुनरो जुलाई 1764 में पटना पहुँचा तथा रोहतास के लीकेदार शाहमल को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया। मुनरो सोन नदी पार कर बक्सर पंहुचा , जहाँ 22 अक्टूबर 1764 की तीन प्रमुख ताकतों के साथ उसका युद्ध हुआ , जिसका परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा।
- बक्सर के युद्ध ने जहाँ मीर जाफर के भाग्य का सूर्य अस्त कर कर दिया , वहीँ बिहार पर अंग्रेजों का पूर्णरूप से अधिकार हो गया। मुग़ल सम्राट ने तत्काल परिस्थिति को ध्यान में रखकर 1765 में बिहार , बंगाल और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दिया।
- अंग्रेजों 1771 में छोटानागपुर पर अधिकार कर लिया था।
- तमाड़ विद्रोह(1789 -1794 ) छोटानागपुर में हुआ था। उरांव जनजाति के लोगों और अंग्रेजों समर्थित जमींदारों के बीच। इस जनजाति ने 1789 में अपने विद्रोही तेवर दिखाना शुरू किया और जमींदारों को लुटा। 1794 तक इन विद्रोहियों ने जमींदारों को इतना भयभीत कर दिया की उनको अंग्रेजों की शरण लेनी पड़ी फिर अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचल दिया।
- चेरो विद्रोह (1800 -1802 ) में चेरो किसानों ने अपने राजा के विरुद्ध विद्रोह किया था यह विद्रोह 1802 में विद्रोही नेता भूषण सिंह को गिरफ्तार कर फांसी देने के बाद समाप्त हो गयी।
- हो विद्रोह 1821 -22 में छोटानागपुर के हो लोगो और सिंघभूम के राजा जगन्नाथ सिंह के विदूरह किया
- कोल विद्रोह 1832 छोटानागपुर , पलामू , सिंघभूम और मानभूम जनजातियों का संयुक्त विद्रोह था जो अंग्रेजों के बढ़ते हस्तक्षेपों के शोषण के खिलाफ उपजा था।
- भूमिज विद्रोह को गंगानारायण हंगामा भी कहा जाता है
- संथाल विद्रोह 1855 -1856 - वीरभूम , ढालभूम , सिंघभूम , मानभूम और बाकुड़ा के जमींदारों द्वारा सताये गए संथाल 1790 से ही संथाल परगना क्षेत्र , जिसे दामिन -ए -कोह कहा जाता था , में आकर बस गए। इन्ही संथालों द्वारा किया गया विद्रोह झारखण्ड के इतिहास में चर्चित हुआ , क्योकि इसने कंपनी और उसके समर्थित जमींदारों को बड़ी संख्या में हानि पहुंचाई।
- 1855 में हजारों संथालों ने भोगनाडीह के चुन्नू मांझी के चार पुत्रों सिद्धू , कान्हू , चाँद और भैरव के नेतृत्व में एक सभा की , जिसमे उन्होंने उत्पीड़कों के विरुद्ध लामबंदी लड़ाई शपथ लिया। सिद्धू -कान्हू ने लोगों में एक नयी ऊर्जा भर दिया।
- जनवरी 1856 तक संथाल परगना क्षेत्र में संथाल विद्रोह को दबा दिया गया
- संथाल विद्रोह के परिणामस्वरूप 30 नवंबर 1856 को विधिवत संथाल परगना जिला की स्थापना की गयी और एशली एडेन को प्रथम जिलाधिकारी बनाया गया।
- सरदारी विद्रोह 1859 -1881 के मध्य चला। इसका उल्लेख एस.सी. राय ने अपनी पुस्तक 'द मुंडाज ' में किया है। वास्तव में यह लड़ाई भूमि के लिए हुआ था।
- खरवार आंदोलन , जिसका नेतृत्व भगीरथ मांझी ने किया था , का उद्देश्य प्राचीन मूल्यों और जनजातीय परम्पराओं को पुनः स्थापित करना था।
- बिरसा मुंडा आंदोलन बिहार के जनजातीय क्षेत्रों में सबसे अधिक संगठित और व्यापक माना जाता है।
- बिरसा मुंडा ने 1895 तक लगभग छह हजार मुंडाओं को एकत्रित कर दिया। अब तक का सबसे बड़ा दल था। बिरसा को भगवान् का अवतार माना जाने लगा।
- बिरसा मुंडा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था :- अंग्रेज सरकार का पूरी तरह दमन कर देना , छोटानागपुर सहित सभी अन्य क्षेत्रों से दिकुओं (बाहरी लोग ) को भगा देना, स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना
- 25 दिसंबर 1897 को जब क्रिसमस का दिन था तथा ईसाई लोग इस दिन जश्न मनाने वाले थे , उसी दिन को बिरसा मुंडा ने हमले के लिए चुना। इस हमले में अधिक से अधिक ईसाईयों को मौत के घाट उतरा गया।
- इसके बाद बिरसा मुंडा और उसके साथी गया मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया।
- जेल (रांची जेल ) में रहते हुए असाध्य बिमारियों और समुचित उपचार के अभाव में बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गयी।
- बिरसा मुंडा आंदोलन के बाद 'मुंडारी खूंटकारि व्यवस्था 'को लागू किया गया।
- 1905 में खूंटी को अनुमंडल बनाया गया और 1908 में गुमला अनुमंडल बनाया गया।
- टाना भगत आंदोलन 1914 में शुरू हुई। टाना भगत कोई व्यक्ति नहीं बल्कि उराँव जनजाति की एक शाखा थी , जिसने कुड़ुख धर्म अपनाया था।
- नोनिया विद्रोह 1770 से 1800 के बिच बिहार के शोरा उत्पादक क्षेत्रों हाजीपुर , तिरहुत , सारण और पूर्णया में हुआ।
- वहाबी आंदोलन के प्रवर्तक अरब के अब्दुल वहाब थे। इन्होने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने उद्देश्य से इस आंदोलन को आरम्भ किया था।
- भारत में वहाबी आंदोलन का नेतृत्वकर्ता उत्तर प्रदेश के सैयद अहमद बरेलवी थे।
- सैयद अहमद बरेलवी का जन्म 1776 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था। इन्होने भारत में मुस्लिम साम्राज्य के पतन के लिए ब्रिटिश शासन को जिम्मेवार मन तथा अंग्रेजों के द्वारा अधिकृत भारत को 'दार -उल -हरब 'कहा और उसको समाप्त करके 'दार -उल -इस्लाम 'को स्थापित करने की शपथ ली।
- 1821 में अहमद बरेलवी ने पटना का दौरा किया , जहाँ विलायत अली , इनायत अली , मुहम्मद हुसैन , फरहत हुसैन आदि उसके संपर्क में आये तथा पटना को वहाबी आंदोलन के मुख्य केंद्र के रूप में स्थापित किया।
- पटना में वहाबी आंदोलन नेतृत्व विलायत अली और इनायत अली ने किया।
- इनायत अली ने दक्षिण भारत में हैदराबाद को तथा विलायत अली ने उत्तर पश्चिम में सितना को अपना केंद्र बनाया था।
- 1844 में विलायत अली अपने 80 अनुयायियों के साथ अफगानिस्तान जा रहे थे , लेकिन लाहौर में इन्हे गिरफ्तार कर लिया गया और फिर पटना जेल भेज दिया गया। 1851 -52 में ये उत्तरी पश्चमी सीमा प्रान्त (वर्तमान पाकिस्तान ) गए , जहाँ ब्रिटिश सैनिको से लड़ते हुए इनकी मृत्यु हो गयी।
- 1857 के विद्रोह के पूर्व 1856 में मुज्जफरपुर में अंग्रेजों के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ रहा था। अंग्रेजी शोषण और अत्याचार के कारण लोगों के मन में असंतोष बढ़ता जा रहा था। इसी समय मुज्जफरपुर की जेल में बंद कैदियों ने विद्रोह कर दिया , जिसे लोटा विद्रोह कहा जाता है। इस समय कैदियों को जेल के अंदर पीतल का लोटा दिया जाता था , लेकिन सरकार ने अचानक निर्णय लिया की पीतल का लोटा के बजाय मिटटी का लोटा दिया जायेगा। अतः कैदियों ने विरोध शुरू कर दिया। विद्रोह के जेल के बाहर भी फैलने के आशंका को देखकर पुनः कैदियों को पीतल का लोटा देना शुरू कर दिया गया।
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