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Modern Period -Bihar Special

                                      MODERN PERIOD -BIHAR SPECIAL

  1. बिहार में यूरोपीय व्यापारियों का आगमन 17 सदीं में प्रारम्भ हुआ। 
  2. बिहार में सर्वप्रथम पुर्तगाली आए , जिन्होंने अपना व्यापारिक केंद्र हुगली में स्थापित किया 
  3. 17 वीं  शताब्दी के मध्य तक डचों ने बिहार में कई स्थानों पर शोरे का गोदाम स्थापित किया। 
  4. सर्वप्रथम डचों ने पटना कॉलेज की उत्तरी ईमारत में 1632 में डच फैक्ट्री की स्थापना किया 
  5. 1662 में बंगाल में डच मामलों के प्रधान नथियस वैग्डेन बरुक ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब से व्यापार से सम्बंधित एक फरमान बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए प्राप्त किया। 
  6. डच यात्री ट्रैवरनि 21 दिसंबर 1665 को पटना आया था उसके बाद उसने छपरा से यात्रा की। उस समय छपरा में शोरे का शुद्धिकरण का काम होता था 
  7. 1848 में विद्रोही अफगान सरदार शमशेर खान ने पटना पर आक्रमण किया तथा फतुहा स्थित डच फैक्ट्री को लुटा। 
  8. 1758 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार में शोरे के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया। 
  9. 25 नवंबर 1759 में वेदरा (बंगाल ) के निर्णायक युद्ध में डच , अंग्रेजों के हाथों पराजित हुए और उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया 
  10. 10 जुलाई 1781 को पटना मिलिशिया के कमांडिंग ऑफिसर मेजर हार्डी ने पटना डच मालगोदाम को जब्त कर लिया 
  11. 05 अगस्त 1781 को पैट्रिक हिट्ले ने डच फैक्ट्री की कमान मैक्सवेल से ग्रहण किया। 
  12. 1824 -25 में डच व्यापारिक केंद्रों को अंतिम रूप से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी में सम्मिलित कर लिया गया। 
  13. भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना फ्रेंकोइस मार्टिन के नेतृत्व में 1664 में की गयी 
  14. मार्टिन ने 1674 में पांडिचेरी (पुदुचेरी ) की स्थापना की और जल्दी ही उसने माही, कराईकल तथा अन्य जगहों पर फ्रांसीसी व्यापारिक केंद्र खोले। 
  15. इसके बाद फ्रांसीसी बंगाल आए और चंद्र नगर की स्थापना किया 
  16. 1734 में फ्रांसीसीयों ने पटना में माल गोदाम की स्थापना किया 
  17. अंग्रेजों ने मार्च 1757 में चंद्रनगर पर कब्ज़ा कर लिया 
  18. 1761 में पांडिचेरी भी फ्रांसीसियों के हाथ से निकल गया और अंग्रेजों के कब्जे में आ गया 
  19. 1763 में डेरिफ के संधि के तहत फ्रांसीसियों को अपना खोए हुए क्षेत्र वापस मिल गया 
  20. 1793 में लार्ड कार्नवालिस के समय में फ्रांसीसियों की व्यापारिक गतिविधियां सिमटकर पांडिचेरी तक रह गयी थी 
  21. 1814 तक बिहार तथा भारत में फ्रांसीसी गतिविधियां लुप्त हो गयी। 
  22. भारत में आनेवाले यूरोपीय कंपनी में डेनमार्क का नाम सबसे अंत में आता है। 
  23. 1774 -75 में पटना में डेनमार्क के कंपनी की स्थापना किया गया। 
  24. मई 1775 में पटना की डेनिश कंपनी के प्रमुख जॉर्ज वर्नर ने बिहार में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर से फरमान की मांग की। 
  25. डेनिश कंपनी मुख्य रूप से शोरे का व्यापार करती थी डच ईस्ट इंडिया कंपनी सूती वस्त्र , चीनी , शोरा , अफीम आदि का व्यापार करती थी। 
  26. 1801 में ब्रिटेन और डेनमार्क के युद्ध शुरू हुआ जिसके परिणामस्वरूप पटना की डेनिस फैक्ट्री तथा सेरामपुर की कोठी को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। 
  27. 1802 में आमियाँ की संधि के अनुसार भारत में डेनमार्क के स्वामित्व वाले क्षेत्रों को वापस कर दिया गया। 
  28. 1845 तक बिहार के सरे डेनिश माल गोदाम और फैक्ट्री अंग्रेजों के अधीन हो गया। 
  29. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थायी माल गोदाम की स्थापना 1691 में पटना के गुलजारबाग में की गयी। 
  30. 1664 में जॉब चरनाक को पटना की अंग्रेजी फैक्ट्री का प्रमुख नियुक्त किया गया। 
  31. जॉब चरनाक ने 1686 में हुगली को लुटा। 
  32. फर्खरूसियर के शासन काल में 1713 में पटना फैक्ट्री को बंद कर दिया गया लेकिन उसने पुनः 1717 में अंग्रेजों को बिहार तथा बंगाल में व्यापार करने की छूट दे दिया। 
  33. पटना फैक्ट्री को अंग्रेजों ने 1718 में फिर खोला। 
  34. 1757 के प्लासी (मालदा के पास ) युद्ध तथा 1764 के बक्सर युद्ध के परिणामस्वरूप बिहार ब्रिटिश आधिपत्य में पूर्ण रूप से आ गया। 
  35. बक्सर युद्ध के बाद लार्ड क्लाइव और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के बीच 12 अगस्त 1765 को इलाहाबाद में एक संधि हुई , जिसके द्वारा कंपनी को बिहार , बंगाल तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। 
  36. 16 अक्टूबर 1756 को मनिहारी के युद्ध में सिराजुदौला द्वारा शौकतजंग पराजित हुआ। 
  37. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारीयों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम की किलेबंदी प्रारम्भ की।  इससे सिराजुदौला और अंग्रेजों के बिच तनाव उत्पन हो गया , जिसके परिणाम स्वरुप 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध हुआ , जिसमे अंग्रेज विजयी हुए और उन्होंने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया तथा उसके पुत्र मीरन को बंगाल का उप नवाब बनाया। 
  38. 1760 में मीर कासिम अंग्रेजों की सहायता से बंगाल का नवाब बना , लेकिन अंग्रेजों से उसका सम्बन्ध अधिक दिनों तक मधुर नहीं रह सका। 
  39. मेरे कासिम ने 1761 में अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर में स्थानांतरित कर लिया। 
  40. पटना के अंग्रेज एजेंट ऐलिस को पटना पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया। ऐलिस ने 24 जून 1763 को पटना पर अधिकार कर लूटपाट किया तथा अनेक निर्दोषों की हत्या किया।  विवश होकर मीर कासिम ने अंग्रेज एजेंट ऐलिस के विरुद्ध सैनिक करवाई शुरू किया।  ऐलिस को बंदी बनाया गया और उसे मुंगेर लाया गया।  पटना में मीर कासिम ने अंग्रेज अधिकारीयों का कत्लेआम किया  और यह घटना 'पटना हत्याकांड 'के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
  41. 2 सितम्बर 1763 को  राजमहल के उदवा नाला के युद्ध में मीर कासिम अंग्रेजों के हाथों पराजित हुआ परन्तु मीर कासिम अंग्रेजों के हाथ नहीं आया और 4 दिसंबर 1763 को कर्मनाशा नदी पर करके अवध राज्य चला गया। 
  42. पटना (उदवा नाला) के युद्ध में पराजय के बाद मीर कासिम अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने लगा।  मीर कासिम ने अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के साथ पटना की ओर प्रस्थान किया। अंग्रेजी सेना का प्रधान कार्नक घबरा गया।  कलकत्ता कौंसिल ने हेक्टर मुनरो को सेना पति बनाया।  मुनरो जुलाई 1764 में पटना पहुँचा तथा रोहतास के लीकेदार शाहमल को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया।  मुनरो सोन नदी पार कर बक्सर पंहुचा , जहाँ 22 अक्टूबर 1764 की तीन प्रमुख ताकतों के साथ उसका युद्ध हुआ , जिसका परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा। 
  43. बक्सर के युद्ध ने जहाँ मीर जाफर के भाग्य का सूर्य अस्त कर कर दिया , वहीँ बिहार पर अंग्रेजों का पूर्णरूप से अधिकार हो गया।  मुग़ल सम्राट ने तत्काल परिस्थिति को ध्यान में रखकर 1765 में बिहार , बंगाल और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दिया। 
  44. अंग्रेजों 1771 में छोटानागपुर पर अधिकार कर लिया था। 
  45. तमाड़  विद्रोह(1789 -1794 ) छोटानागपुर में हुआ था।  उरांव जनजाति के लोगों और अंग्रेजों समर्थित जमींदारों के बीच।  इस जनजाति ने 1789 में अपने विद्रोही तेवर दिखाना शुरू किया और जमींदारों को लुटा। 1794 तक इन विद्रोहियों ने जमींदारों को इतना भयभीत कर दिया की उनको अंग्रेजों की शरण लेनी पड़ी फिर अंग्रेजों ने इस विद्रोह को  कुचल दिया। 
  46. चेरो विद्रोह (1800 -1802 ) में चेरो किसानों ने अपने राजा के विरुद्ध विद्रोह किया था यह विद्रोह 1802 में विद्रोही नेता भूषण सिंह को गिरफ्तार कर फांसी देने के बाद समाप्त हो गयी। 
  47. हो विद्रोह 1821 -22 में छोटानागपुर के हो लोगो और सिंघभूम के राजा जगन्नाथ सिंह के विदूरह किया 
  48. कोल विद्रोह 1832 छोटानागपुर , पलामू , सिंघभूम और मानभूम  जनजातियों का संयुक्त विद्रोह था जो अंग्रेजों के बढ़ते हस्तक्षेपों के शोषण के खिलाफ  उपजा था। 
  49. भूमिज विद्रोह को गंगानारायण हंगामा भी कहा जाता है 
  50. संथाल विद्रोह 1855 -1856  - वीरभूम , ढालभूम , सिंघभूम , मानभूम और बाकुड़ा के जमींदारों द्वारा सताये गए संथाल 1790 से ही संथाल परगना क्षेत्र , जिसे दामिन -ए -कोह कहा जाता था , में आकर बस गए।  इन्ही संथालों द्वारा किया गया विद्रोह झारखण्ड के इतिहास में  चर्चित हुआ , क्योकि इसने कंपनी और उसके समर्थित जमींदारों को बड़ी संख्या में हानि पहुंचाई। 
  51. 1855 में हजारों संथालों ने भोगनाडीह के चुन्नू मांझी के चार पुत्रों सिद्धू , कान्हू , चाँद और भैरव के नेतृत्व में एक सभा की , जिसमे उन्होंने  उत्पीड़कों के विरुद्ध लामबंदी लड़ाई  शपथ लिया।  सिद्धू -कान्हू ने लोगों में एक नयी ऊर्जा भर दिया। 
  52. जनवरी 1856 तक संथाल परगना क्षेत्र में संथाल विद्रोह को दबा दिया गया 
  53. संथाल विद्रोह के परिणामस्वरूप 30 नवंबर 1856 को विधिवत संथाल परगना जिला की स्थापना की गयी और एशली एडेन  को प्रथम जिलाधिकारी बनाया गया। 
  54. सरदारी विद्रोह 1859 -1881 के मध्य चला।  इसका उल्लेख एस.सी. राय ने अपनी पुस्तक 'द मुंडाज ' में किया है।  वास्तव में यह लड़ाई भूमि के लिए हुआ था। 
  55. खरवार आंदोलन , जिसका नेतृत्व भगीरथ मांझी ने किया था , का उद्देश्य प्राचीन मूल्यों और जनजातीय परम्पराओं को पुनः स्थापित करना था। 
  56. बिरसा मुंडा आंदोलन बिहार के जनजातीय क्षेत्रों में सबसे अधिक संगठित और व्यापक माना  जाता है। 
  57. बिरसा मुंडा ने 1895 तक लगभग छह हजार मुंडाओं को एकत्रित कर दिया।  अब तक का सबसे बड़ा दल था। बिरसा को भगवान् का अवतार माना जाने लगा। 
  58. बिरसा मुंडा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था :- अंग्रेज  सरकार का पूरी तरह दमन कर देना , छोटानागपुर सहित सभी अन्य क्षेत्रों से दिकुओं (बाहरी लोग ) को भगा देना, स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना 
  59. 25 दिसंबर 1897 को जब क्रिसमस का दिन था तथा ईसाई लोग इस दिन जश्न मनाने वाले थे , उसी दिन को बिरसा  मुंडा ने हमले के लिए चुना।  इस हमले में अधिक से अधिक ईसाईयों को मौत के घाट उतरा गया। 
  60. इसके बाद बिरसा मुंडा और उसके साथी गया मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया। 
  61. जेल (रांची जेल )  में रहते हुए असाध्य बिमारियों और समुचित उपचार के अभाव में बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गयी। 
  62. बिरसा मुंडा आंदोलन के बाद 'मुंडारी खूंटकारि व्यवस्था 'को लागू किया गया। 
  63. 1905 में खूंटी को अनुमंडल बनाया गया और 1908 में गुमला अनुमंडल बनाया गया। 
  64. टाना भगत आंदोलन 1914 में शुरू हुई।  टाना भगत कोई व्यक्ति नहीं बल्कि उराँव जनजाति की एक शाखा थी , जिसने कुड़ुख धर्म अपनाया था। 
  65. नोनिया विद्रोह 1770 से 1800 के बिच बिहार के शोरा उत्पादक क्षेत्रों हाजीपुर , तिरहुत , सारण और पूर्णया में हुआ। 
  66. वहाबी आंदोलन के प्रवर्तक अरब के अब्दुल वहाब थे।  इन्होने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने उद्देश्य से इस आंदोलन को आरम्भ किया था। 
  67. भारत में वहाबी आंदोलन का नेतृत्वकर्ता उत्तर प्रदेश के सैयद अहमद बरेलवी थे। 
  68. सैयद अहमद बरेलवी का जन्म 1776 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था।  इन्होने भारत में मुस्लिम साम्राज्य के पतन के लिए ब्रिटिश शासन  को जिम्मेवार मन तथा अंग्रेजों के द्वारा अधिकृत भारत को 'दार -उल -हरब 'कहा और उसको समाप्त करके 'दार -उल -इस्लाम 'को स्थापित करने की शपथ ली। 
  69. 1821 में अहमद बरेलवी ने पटना का दौरा किया , जहाँ विलायत अली , इनायत अली , मुहम्मद हुसैन , फरहत हुसैन आदि उसके संपर्क में आये तथा पटना को वहाबी आंदोलन के मुख्य केंद्र के रूप में स्थापित किया। 
  70. पटना में वहाबी आंदोलन  नेतृत्व विलायत अली और इनायत अली ने किया। 
  71. इनायत अली ने दक्षिण भारत में हैदराबाद को तथा विलायत अली ने उत्तर पश्चिम में सितना को अपना केंद्र बनाया था। 
  72. 1844 में विलायत  अली अपने 80 अनुयायियों के  साथ अफगानिस्तान जा रहे थे , लेकिन लाहौर में इन्हे गिरफ्तार कर लिया गया और फिर पटना जेल भेज दिया गया।  1851 -52 में ये उत्तरी पश्चमी सीमा प्रान्त (वर्तमान  पाकिस्तान ) गए , जहाँ ब्रिटिश सैनिको से लड़ते हुए इनकी मृत्यु हो गयी। 
  73. 1857 के विद्रोह के पूर्व 1856 में मुज्जफरपुर में अंग्रेजों के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ रहा था। अंग्रेजी शोषण और अत्याचार के कारण लोगों के मन में असंतोष बढ़ता जा रहा था।  इसी समय मुज्जफरपुर की जेल में बंद कैदियों ने विद्रोह कर दिया , जिसे लोटा विद्रोह कहा जाता है।  इस समय कैदियों को जेल के अंदर पीतल का लोटा दिया जाता था , लेकिन सरकार ने अचानक निर्णय लिया की पीतल का लोटा के बजाय मिटटी का लोटा दिया जायेगा। अतः कैदियों ने विरोध शुरू कर दिया।  विद्रोह के जेल के बाहर भी फैलने के आशंका को देखकर पुनः कैदियों को पीतल का लोटा देना शुरू कर दिया गया। 

Modern Period -Bihar Special

                                      MODERN PERIOD -BIHAR SPECIAL

  1. बिहार में यूरोपीय व्यापारियों का आगमन 17 सदीं में प्रारम्भ हुआ। 
  2. बिहार में सर्वप्रथम पुर्तगाली आए , जिन्होंने अपना व्यापारिक केंद्र हुगली में स्थापित किया 
  3. 17 वीं  शताब्दी के मध्य तक डचों ने बिहार में कई स्थानों पर शोरे का गोदाम स्थापित किया। 
  4. सर्वप्रथम डचों ने पटना कॉलेज की उत्तरी ईमारत में 1632 में डच फैक्ट्री की स्थापना किया 
  5. 1662 में बंगाल में डच मामलों के प्रधान नथियस वैग्डेन बरुक ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब से व्यापार से सम्बंधित एक फरमान बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए प्राप्त किया। 
  6. डच यात्री ट्रैवरनि 21 दिसंबर 1665 को पटना आया था उसके बाद उसने छपरा से यात्रा की। उस समय छपरा में शोरे का शुद्धिकरण का काम होता था 
  7. 1848 में विद्रोही अफगान सरदार शमशेर खान ने पटना पर आक्रमण किया तथा फतुहा स्थित डच फैक्ट्री को लुटा। 
  8. 1758 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिहार में शोरे के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया। 
  9. 25 नवंबर 1759 में वेदरा (बंगाल ) के निर्णायक युद्ध में डच , अंग्रेजों के हाथों पराजित हुए और उनका अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया 
  10. 10 जुलाई 1781 को पटना मिलिशिया के कमांडिंग ऑफिसर मेजर हार्डी ने पटना डच मालगोदाम को जब्त कर लिया 
  11. 05 अगस्त 1781 को पैट्रिक हिट्ले ने डच फैक्ट्री की कमान मैक्सवेल से ग्रहण किया। 
  12. 1824 -25 में डच व्यापारिक केंद्रों को अंतिम रूप से अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी में सम्मिलित कर लिया गया। 
  13. भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना फ्रेंकोइस मार्टिन के नेतृत्व में 1664 में की गयी 
  14. मार्टिन ने 1674 में पांडिचेरी (पुदुचेरी ) की स्थापना की और जल्दी ही उसने माही, कराईकल तथा अन्य जगहों पर फ्रांसीसी व्यापारिक केंद्र खोले। 
  15. इसके बाद फ्रांसीसी बंगाल आए और चंद्र नगर की स्थापना किया 
  16. 1734 में फ्रांसीसीयों ने पटना में माल गोदाम की स्थापना किया 
  17. अंग्रेजों ने मार्च 1757 में चंद्रनगर पर कब्ज़ा कर लिया 
  18. 1761 में पांडिचेरी भी फ्रांसीसियों के हाथ से निकल गया और अंग्रेजों के कब्जे में आ गया 
  19. 1763 में डेरिफ के संधि के तहत फ्रांसीसियों को अपना खोए हुए क्षेत्र वापस मिल गया 
  20. 1793 में लार्ड कार्नवालिस के समय में फ्रांसीसियों की व्यापारिक गतिविधियां सिमटकर पांडिचेरी तक रह गयी थी 
  21. 1814 तक बिहार तथा भारत में फ्रांसीसी गतिविधियां लुप्त हो गयी। 
  22. भारत में आनेवाले यूरोपीय कंपनी में डेनमार्क का नाम सबसे अंत में आता है। 
  23. 1774 -75 में पटना में डेनमार्क के कंपनी की स्थापना किया गया। 
  24. मई 1775 में पटना की डेनिश कंपनी के प्रमुख जॉर्ज वर्नर ने बिहार में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर से फरमान की मांग की। 
  25. डेनिश कंपनी मुख्य रूप से शोरे का व्यापार करती थी डच ईस्ट इंडिया कंपनी सूती वस्त्र , चीनी , शोरा , अफीम आदि का व्यापार करती थी। 
  26. 1801 में ब्रिटेन और डेनमार्क के युद्ध शुरू हुआ जिसके परिणामस्वरूप पटना की डेनिस फैक्ट्री तथा सेरामपुर की कोठी को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। 
  27. 1802 में आमियाँ की संधि के अनुसार भारत में डेनमार्क के स्वामित्व वाले क्षेत्रों को वापस कर दिया गया। 
  28. 1845 तक बिहार के सरे डेनिश माल गोदाम और फैक्ट्री अंग्रेजों के अधीन हो गया। 
  29. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थायी माल गोदाम की स्थापना 1691 में पटना के गुलजारबाग में की गयी। 
  30. 1664 में जॉब चरनाक को पटना की अंग्रेजी फैक्ट्री का प्रमुख नियुक्त किया गया। 
  31. जॉब चरनाक ने 1686 में हुगली को लुटा। 
  32. फर्खरूसियर के शासन काल में 1713 में पटना फैक्ट्री को बंद कर दिया गया लेकिन उसने पुनः 1717 में अंग्रेजों को बिहार तथा बंगाल में व्यापार करने की छूट दे दिया। 
  33. पटना फैक्ट्री को अंग्रेजों ने 1718 में फिर खोला। 
  34. 1757 के प्लासी (मालदा के पास ) युद्ध तथा 1764 के बक्सर युद्ध के परिणामस्वरूप बिहार ब्रिटिश आधिपत्य में पूर्ण रूप से आ गया। 
  35. बक्सर युद्ध के बाद लार्ड क्लाइव और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के बीच 12 अगस्त 1765 को इलाहाबाद में एक संधि हुई , जिसके द्वारा कंपनी को बिहार , बंगाल तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई। 
  36. 16 अक्टूबर 1756 को मनिहारी के युद्ध में सिराजुदौला द्वारा शौकतजंग पराजित हुआ। 
  37. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारीयों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम की किलेबंदी प्रारम्भ की।  इससे सिराजुदौला और अंग्रेजों के बिच तनाव उत्पन हो गया , जिसके परिणाम स्वरुप 23 जून 1757 को प्लासी का युद्ध हुआ , जिसमे अंग्रेज विजयी हुए और उन्होंने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया तथा उसके पुत्र मीरन को बंगाल का उप नवाब बनाया। 
  38. 1760 में मीर कासिम अंग्रेजों की सहायता से बंगाल का नवाब बना , लेकिन अंग्रेजों से उसका सम्बन्ध अधिक दिनों तक मधुर नहीं रह सका। 
  39. मेरे कासिम ने 1761 में अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर में स्थानांतरित कर लिया। 
  40. पटना के अंग्रेज एजेंट ऐलिस को पटना पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया। ऐलिस ने 24 जून 1763 को पटना पर अधिकार कर लूटपाट किया तथा अनेक निर्दोषों की हत्या किया।  विवश होकर मीर कासिम ने अंग्रेज एजेंट ऐलिस के विरुद्ध सैनिक करवाई शुरू किया।  ऐलिस को बंदी बनाया गया और उसे मुंगेर लाया गया।  पटना में मीर कासिम ने अंग्रेज अधिकारीयों का कत्लेआम किया  और यह घटना 'पटना हत्याकांड 'के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
  41. 2 सितम्बर 1763 को  राजमहल के उदवा नाला के युद्ध में मीर कासिम अंग्रेजों के हाथों पराजित हुआ परन्तु मीर कासिम अंग्रेजों के हाथ नहीं आया और 4 दिसंबर 1763 को कर्मनाशा नदी पर करके अवध राज्य चला गया। 
  42. पटना (उदवा नाला) के युद्ध में पराजय के बाद मीर कासिम अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने लगा।  मीर कासिम ने अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के साथ पटना की ओर प्रस्थान किया। अंग्रेजी सेना का प्रधान कार्नक घबरा गया।  कलकत्ता कौंसिल ने हेक्टर मुनरो को सेना पति बनाया।  मुनरो जुलाई 1764 में पटना पहुँचा तथा रोहतास के लीकेदार शाहमल को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया।  मुनरो सोन नदी पार कर बक्सर पंहुचा , जहाँ 22 अक्टूबर 1764 की तीन प्रमुख ताकतों के साथ उसका युद्ध हुआ , जिसका परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा। 
  43. बक्सर के युद्ध ने जहाँ मीर जाफर के भाग्य का सूर्य अस्त कर कर दिया , वहीँ बिहार पर अंग्रेजों का पूर्णरूप से अधिकार हो गया।  मुग़ल सम्राट ने तत्काल परिस्थिति को ध्यान में रखकर 1765 में बिहार , बंगाल और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दिया। 
  44. अंग्रेजों 1771 में छोटानागपुर पर अधिकार कर लिया था। 
  45. तमाड़  विद्रोह(1789 -1794 ) छोटानागपुर में हुआ था।  उरांव जनजाति के लोगों और अंग्रेजों समर्थित जमींदारों के बीच।  इस जनजाति ने 1789 में अपने विद्रोही तेवर दिखाना शुरू किया और जमींदारों को लुटा। 1794 तक इन विद्रोहियों ने जमींदारों को इतना भयभीत कर दिया की उनको अंग्रेजों की शरण लेनी पड़ी फिर अंग्रेजों ने इस विद्रोह को  कुचल दिया। 
  46. चेरो विद्रोह (1800 -1802 ) में चेरो किसानों ने अपने राजा के विरुद्ध विद्रोह किया था यह विद्रोह 1802 में विद्रोही नेता भूषण सिंह को गिरफ्तार कर फांसी देने के बाद समाप्त हो गयी। 
  47. हो विद्रोह 1821 -22 में छोटानागपुर के हो लोगो और सिंघभूम के राजा जगन्नाथ सिंह के विदूरह किया 
  48. कोल विद्रोह 1832 छोटानागपुर , पलामू , सिंघभूम और मानभूम  जनजातियों का संयुक्त विद्रोह था जो अंग्रेजों के बढ़ते हस्तक्षेपों के शोषण के खिलाफ  उपजा था। 
  49. भूमिज विद्रोह को गंगानारायण हंगामा भी कहा जाता है 
  50. संथाल विद्रोह 1855 -1856  - वीरभूम , ढालभूम , सिंघभूम , मानभूम और बाकुड़ा के जमींदारों द्वारा सताये गए संथाल 1790 से ही संथाल परगना क्षेत्र , जिसे दामिन -ए -कोह कहा जाता था , में आकर बस गए।  इन्ही संथालों द्वारा किया गया विद्रोह झारखण्ड के इतिहास में  चर्चित हुआ , क्योकि इसने कंपनी और उसके समर्थित जमींदारों को बड़ी संख्या में हानि पहुंचाई। 
  51. 1855 में हजारों संथालों ने भोगनाडीह के चुन्नू मांझी के चार पुत्रों सिद्धू , कान्हू , चाँद और भैरव के नेतृत्व में एक सभा की , जिसमे उन्होंने  उत्पीड़कों के विरुद्ध लामबंदी लड़ाई  शपथ लिया।  सिद्धू -कान्हू ने लोगों में एक नयी ऊर्जा भर दिया। 
  52. जनवरी 1856 तक संथाल परगना क्षेत्र में संथाल विद्रोह को दबा दिया गया 
  53. संथाल विद्रोह के परिणामस्वरूप 30 नवंबर 1856 को विधिवत संथाल परगना जिला की स्थापना की गयी और एशली एडेन  को प्रथम जिलाधिकारी बनाया गया। 
  54. सरदारी विद्रोह 1859 -1881 के मध्य चला।  इसका उल्लेख एस.सी. राय ने अपनी पुस्तक 'द मुंडाज ' में किया है।  वास्तव में यह लड़ाई भूमि के लिए हुआ था। 
  55. खरवार आंदोलन , जिसका नेतृत्व भगीरथ मांझी ने किया था , का उद्देश्य प्राचीन मूल्यों और जनजातीय परम्पराओं को पुनः स्थापित करना था। 
  56. बिरसा मुंडा आंदोलन बिहार के जनजातीय क्षेत्रों में सबसे अधिक संगठित और व्यापक माना  जाता है। 
  57. बिरसा मुंडा ने 1895 तक लगभग छह हजार मुंडाओं को एकत्रित कर दिया।  अब तक का सबसे बड़ा दल था। बिरसा को भगवान् का अवतार माना जाने लगा। 
  58. बिरसा मुंडा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था :- अंग्रेज  सरकार का पूरी तरह दमन कर देना , छोटानागपुर सहित सभी अन्य क्षेत्रों से दिकुओं (बाहरी लोग ) को भगा देना, स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना 
  59. 25 दिसंबर 1897 को जब क्रिसमस का दिन था तथा ईसाई लोग इस दिन जश्न मनाने वाले थे , उसी दिन को बिरसा  मुंडा ने हमले के लिए चुना।  इस हमले में अधिक से अधिक ईसाईयों को मौत के घाट उतरा गया। 
  60. इसके बाद बिरसा मुंडा और उसके साथी गया मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया। 
  61. जेल (रांची जेल )  में रहते हुए असाध्य बिमारियों और समुचित उपचार के अभाव में बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गयी। 
  62. बिरसा मुंडा आंदोलन के बाद 'मुंडारी खूंटकारि व्यवस्था 'को लागू किया गया। 
  63. 1905 में खूंटी को अनुमंडल बनाया गया और 1908 में गुमला अनुमंडल बनाया गया। 
  64. टाना भगत आंदोलन 1914 में शुरू हुई।  टाना भगत कोई व्यक्ति नहीं बल्कि उराँव जनजाति की एक शाखा थी , जिसने कुड़ुख धर्म अपनाया था। 
  65. नोनिया विद्रोह 1770 से 1800 के बिच बिहार के शोरा उत्पादक क्षेत्रों हाजीपुर , तिरहुत , सारण और पूर्णया में हुआ। 
  66. वहाबी आंदोलन के प्रवर्तक अरब के अब्दुल वहाब थे।  इन्होने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने उद्देश्य से इस आंदोलन को आरम्भ किया था। 
  67. भारत में वहाबी आंदोलन का नेतृत्वकर्ता उत्तर प्रदेश के सैयद अहमद बरेलवी थे। 
  68. सैयद अहमद बरेलवी का जन्म 1776 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था।  इन्होने भारत में मुस्लिम साम्राज्य के पतन के लिए ब्रिटिश शासन  को जिम्मेवार मन तथा अंग्रेजों के द्वारा अधिकृत भारत को 'दार -उल -हरब 'कहा और उसको समाप्त करके 'दार -उल -इस्लाम 'को स्थापित करने की शपथ ली। 
  69. 1821 में अहमद बरेलवी ने पटना का दौरा किया , जहाँ विलायत अली , इनायत अली , मुहम्मद हुसैन , फरहत हुसैन आदि उसके संपर्क में आये तथा पटना को वहाबी आंदोलन के मुख्य केंद्र के रूप में स्थापित किया। 
  70. पटना में वहाबी आंदोलन  नेतृत्व विलायत अली और इनायत अली ने किया। 
  71. इनायत अली ने दक्षिण भारत में हैदराबाद को तथा विलायत अली ने उत्तर पश्चिम में सितना को अपना केंद्र बनाया था। 
  72. 1844 में विलायत  अली अपने 80 अनुयायियों के  साथ अफगानिस्तान जा रहे थे , लेकिन लाहौर में इन्हे गिरफ्तार कर लिया गया और फिर पटना जेल भेज दिया गया।  1851 -52 में ये उत्तरी पश्चमी सीमा प्रान्त (वर्तमान  पाकिस्तान ) गए , जहाँ ब्रिटिश सैनिको से लड़ते हुए इनकी मृत्यु हो गयी। 
  73. 1857 के विद्रोह के पूर्व 1856 में मुज्जफरपुर में अंग्रेजों के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ रहा था। अंग्रेजी शोषण और अत्याचार के कारण लोगों के मन में असंतोष बढ़ता जा रहा था।  इसी समय मुज्जफरपुर की जेल में बंद कैदियों ने विद्रोह कर दिया , जिसे लोटा विद्रोह कहा जाता है।  इस समय कैदियों को जेल के अंदर पीतल का लोटा दिया जाता था , लेकिन सरकार ने अचानक निर्णय लिया की पीतल का लोटा के बजाय मिटटी का लोटा दिया जायेगा। अतः कैदियों ने विरोध शुरू कर दिया।  विद्रोह के जेल के बाहर भी फैलने के आशंका को देखकर पुनः कैदियों को पीतल का लोटा देना शुरू कर दिया गया। 

EUROPEANS ARRIVAL IN INDIA


                          भारत में यूरोपीयों का आगमन : महत्वपूर्ण तथ्य (विपिन चंद्रा )

  1. 1453 में उस्मानिया सल्तनत ने एशिया माइनर को जीता और कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। जिससे पूर्व और पश्चिम के बीच के पुराने व्यापारिक मार्ग पर तुर्कों का नियंत्रण हो गया। 
  2. स्पाइस आइलैंड (मसाले के द्वीप ) इंडोनेशिया में है।  उस समय स्पाइस आइलैंड को ईस्ट इंडीज कहा जाता था। 
  3. 1494 में स्पेन का कोलंबस भारत को खोजने निकला था लेकिन वह अमेरिका की खोज कर बैठा। 
  4. 1498 में पुर्तगाल के वास्को -डि -गामा ने यूरोप से भारत तक का नया और पूरी तरह से समुद्री मार्ग ढूंढ निकला।  वह केप ऑफ़ गुड होप होते हुए अफ्रीका का पूरा चक्कर लगाकर केरल के कालीकट पंहुचा था। 
  5. भारत में पुर्तगाल ने कोचीन , गोवा , दमण और द्यु में अपने व्यापारिक केंद्र खोले। 
  6. पुर्तग़ालिओं ने गोवा को 1510 में अपने कब्जे में ले लिया था।  उस समय अल्फांसो -डि -अल्बुकर्क वाइसराय था 
  7. आगे चलकर इंडोनेशिया पर डच (हॉलैंड ), और भारत , श्रीलंका और मलाया पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया था। 
  8. 1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और डच संसद  ने एक चार्टर स्वीकार करके कंपनी को युद्ध छेड़ने , संधिया करने , इलाके जीतने और किले बनाने के अधिकार दे दिए। 
  9. डचो की खास दिलचस्पी भारत में नहीं बल्कि इंडोनेशिया के जावा , सुमात्रा और स्पाइस आइलैंड जैसे द्वीपों पर थी , जहाँ मसाले खूब पैदा होता था। 
  10. डचों ने पश्चमी भारत में गुजरात के सूरत , भड़ौच , कैम्बे और अहमदाबाद ; केरल के कोचीन ; मद्रास के नागपत्तनम , आँध्रप्रदेश के मसूलीपत्तनम ; बंगाल के चिनसुरा ; बिहार के पटना और उत्तर प्रदेश के आगरा में भी अपने व्यापर -केंद्र खोले। 
  11. डचों ने 1658 में पुर्तगालियों से श्रीलंका को जीत लिया। 
  12. 1599 में मर्चेंट एडवेंचर्स नाम से जाने जाने वाले कुछ व्यापारियों ने पूर्व से व्यापर करने के लिए एक कंपनी बनाई।  इस कंपनी को , जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी कहा जाता है , 31 दिसंबर 1600 को ब्रिटेन के महारानी एलिज़ाबेथ ने एक रॉयल चार्टर के द्वारा पूर्व से व्यापर करने का एकमात्र अधिकार दे दिया।  
  13. 1608 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के पश्चमी तट पर सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।  तब व्यापारिक केंद्रों फैक्ट्री के नाम से जाना जाता था। 
  14. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कप्तान हॉकिंस को जहाँगीर के दरबार में शाही आज्ञा लेने के लिए भेजा था। 
  15. 1615 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का दूत , सर टॉमस रो , मुग़ल शासक जहांगीर के दरबार में पंहुचा। 
  16. 1622 में जब ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने एक पुर्तगाली राजकुमारी से शादी की  तो पुर्तगालियों ने उसे बम्बई का द्वीप दहेज़ में दे दिया।  
  17. विजयनगर साम्राज्य का पतन 1565 में हो गया था। 
  18. अंग्रेजों ने दक्षिण भारत में अपनी पहली फैक्ट्री मसूलीपत्तम (आँध्रप्रदेश ) में 1611 में स्थापित किया। परन्तु जल्द ही अंग्रेजों की गतिविधियों का केंद्र मद्रास हो गया जिसका पटटा 1639 में मद्रास के स्थानीय राजा ने उन्हें दे दिया था। 
  19. 1668 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुर्तगाल से बम्बई का द्वीप प्राप्त किया। 
  20. उड़ीसा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की फैक्ट्री 1633 में खुला। 1651 में इस फैक्ट्री को बंगाल के हुगली में व्यापार करने की इजाजत मिल गयी थी 
  21. 1687 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर्स ने मद्रास के गवर्नर को यह सलाह दी की ' वह एक ऐसी नागरिक और सैनिक शक्ति स्थापित करे और राजस्व का सुरक्षित और इतना बड़ा स्रोत बनाये की भारत में एक बड़े , मजबूत और हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित ब्रिटिश राज्य की नीव डाली जा सके। '
  22. 1686 में अंग्रेजों ने बंगाल के हुगली शहर को नष्ट कर दिया और मुग़लों के विरुद्ध आक्रमण कर दिया। तभी से दोनों के बीच शत्रुता की शुरुआत हुई। 
  23. 1698 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूतानुटी , कलिकता और गोविंदपुरी की जमींदारी प्राप्त कर लिया और वहां पर उन्होंने अपनी फैक्ट्री के अगल बगल फोर्ट विलियम नाम का किला बनाया।  यही गावँ जल्द ही बढ़कर एक नगर बन गया जिसे अब कलकत्ता कहा जाता है। 
  24. 1600 ईस्वी के चार्टर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को केप ऑफ़ गुड होप के पूर्व में व्यापार करने का एकाधिकार सिर्फ 15 वर्षो का मिला था।  इस कंपनी का स्वरुप एक पूरी तरह बंद निगम या इजारेदारी जैसा था। 
  25. फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1664 में हुई थी 
  26. 1742 में फ्रांस और इंग्लैंड के बिच युद्ध शुरू हुआ जो 1748 तक चला 
  27. वांडीवाश का युद्ध 22 जनवरी 1760 को इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ा गया था। 
  28. पेरिस का संधि 1763 में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच हुआ। 
  29. प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराजुदौला के बिच हुआ जिसमे सिराजुदौला की हार हुई. 
  30. सिराजुदौला ने 20 जून 1756 को कोलकाता के फोर्ट विलियम पर कब्ज़ा कर लिया था। 
  31. बंगाल के कवि नवीनचंद्र सेन के अनुसार प्लासी के युद्ध के बाद ' भारत के लिए शाश्वत दुःख की काली रात ' का आरम्भ हुआ। 
  32. प्लासी के युद्ध जितने के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब घोषित किया था 
  33.  1760 में  मीर जाफर को बंगाल के नवाब पद से हटना पड़ा और उसके बाद उसका दामाद मीर कासिम को नवाब बनाया गया। 
  34. मीर कासिम को 1763 में बंगाल के नवाब के पद से हटाया गया। तब वह अवध भाग गया जहाँ उसने अवध के नवाब सुजाउद्दौला और भगोड़े मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ एक समझौता किया। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के साथ इन तीनों सहयोगियों की मुठभेड़ 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर में हुई जिसमे ये तीनो की हार हुई। 
  35. बक्सर के युद्ध ने अंग्रेजों को बंगाल , बिहार और उड़ीसा का निर्विवाद शासक बना दिया और अवध भी उनकी अनुसार काम करने लगा। 
  36. 1765 में क्लाइव बंगाल का गवर्नर बना। 
  37. 1763 में अंग्रेजों ने मीर जाफर को दोबारा बंगाल के गवर्नर बना दिया था 
  38. मीर जाफर के मरने के बाद उसका बेटा निजामुद्दौला को नवाब बनाया गया और बदले में उससे 20 फेब्रुअरी 1765 को एक नई संधि पर दस्तखत करा लिया गया।  इस संधि के अनुसार नवाब को अपनी अधिकांश सेना भंग कर देना था और बंगाल का शासन एक नायब सूबेदार के सहारे चलना था। नायब सूबेदार की नियुक्ति कंपनी करती और जिसे कंपनी की स्वीकृति के बिना नहीं हटाया जा सकता था। इस तरह कंपनी ने बंगाल के प्रशासन पर पूरा अधिकार बना लिया 
  39. मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय अभी भी साम्राज्य का नाममात्र का शासक था।  उससे कंपनी ने बंगाल , बिहार और उड़ीसा की दीवानी (अर्थात राजस्व वसूल करने का अधिकार ) प्राप्त कर लिया।  इस तरह बंगाल के ऊपर उसके नियंत्रण से भारत के सबसे समृद्ध प्रान्त का राजस्व कंपनी के हाथ में चला गया। बदले में कंपनी ने शाह आलम द्वितीय को छह लाख रूपए दिया और उसे कौरा और इलाहाबाद जिले भी जीतकर दे दिया।  शाह आलम द्वितीय छह वर्षो तक इलाहाबाद के लिखे में अंग्रेजों का कैदी बनकर रहा। 
  40. 1765 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल की वास्तविक मालिक बन गया था 
  41. 1707 में बंगाल में अकाल पड़ा था। 
  42. 17 मई 1782 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठो के बीच सलबई की संधि हुई 
  43. सहायक संधि के जन्मदाता लार्ड वेलेजली था।  उसने 1798 और 1800 में हैदराबाद के निजाम के साथ सहायक संधि की। 1801 में अवध के नवाब के साथ सहायक संधि की। 
  44. 4 मई 1799 को अपनी राजधानी श्रीरंगपटनम की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान कंपनी के द्वारा मारा गया 
  45. 31 दिसंबर 1802 को पेशवा बाजीराव द्वितीय (मराठा ) और अंग्रेजों के बीच बसाई की संधि हुई। 
  46. सर चार्ल्स नेपियर ने 1843 में सिंध का अधिग्रहण कर लिया 
  47. 1839 में महाराज रंजीत सिंह की मृत्यु हो गयी। 
  48. लार्ड डलहौजी 1848 में भारत का गवर्नर जनरल बना 
  49. डलहौजी ने राज्य विलय का सिद्धांत (डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स ) अपनाया। 
  50. इसी सिद्धांत पर डलहौजी ने 1848 में सतारा (महाराष्ट्र ) और 1854 में नागपुर और झाँसी समेत अनेक राज्यों का अधिग्रहण किया 
  51. डलहौजी ने 1856 में अवध को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया 
  52. कच्चे कपास की ब्रिटेन में बढ़ती मांग के चलते लार्ड डलहौजी ने 1853 में अवध के नवाब से बरार का कपास उत्पादक प्रान्त ले लिया था। 

EUROPEANS ARRIVAL IN INDIA


                          भारत में यूरोपीयों का आगमन : महत्वपूर्ण तथ्य (विपिन चंद्रा )

  1. 1453 में उस्मानिया सल्तनत ने एशिया माइनर को जीता और कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लिया। जिससे पूर्व और पश्चिम के बीच के पुराने व्यापारिक मार्ग पर तुर्कों का नियंत्रण हो गया। 
  2. स्पाइस आइलैंड (मसाले के द्वीप ) इंडोनेशिया में है।  उस समय स्पाइस आइलैंड को ईस्ट इंडीज कहा जाता था। 
  3. 1494 में स्पेन का कोलंबस भारत को खोजने निकला था लेकिन वह अमेरिका की खोज कर बैठा। 
  4. 1498 में पुर्तगाल के वास्को -डि -गामा ने यूरोप से भारत तक का नया और पूरी तरह से समुद्री मार्ग ढूंढ निकला।  वह केप ऑफ़ गुड होप होते हुए अफ्रीका का पूरा चक्कर लगाकर केरल के कालीकट पंहुचा था। 
  5. भारत में पुर्तगाल ने कोचीन , गोवा , दमण और द्यु में अपने व्यापारिक केंद्र खोले। 
  6. पुर्तग़ालिओं ने गोवा को 1510 में अपने कब्जे में ले लिया था।  उस समय अल्फांसो -डि -अल्बुकर्क वाइसराय था 
  7. आगे चलकर इंडोनेशिया पर डच (हॉलैंड ), और भारत , श्रीलंका और मलाया पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया था। 
  8. 1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और डच संसद  ने एक चार्टर स्वीकार करके कंपनी को युद्ध छेड़ने , संधिया करने , इलाके जीतने और किले बनाने के अधिकार दे दिए। 
  9. डचो की खास दिलचस्पी भारत में नहीं बल्कि इंडोनेशिया के जावा , सुमात्रा और स्पाइस आइलैंड जैसे द्वीपों पर थी , जहाँ मसाले खूब पैदा होता था। 
  10. डचों ने पश्चमी भारत में गुजरात के सूरत , भड़ौच , कैम्बे और अहमदाबाद ; केरल के कोचीन ; मद्रास के नागपत्तनम , आँध्रप्रदेश के मसूलीपत्तनम ; बंगाल के चिनसुरा ; बिहार के पटना और उत्तर प्रदेश के आगरा में भी अपने व्यापर -केंद्र खोले। 
  11. डचों ने 1658 में पुर्तगालियों से श्रीलंका को जीत लिया। 
  12. 1599 में मर्चेंट एडवेंचर्स नाम से जाने जाने वाले कुछ व्यापारियों ने पूर्व से व्यापर करने के लिए एक कंपनी बनाई।  इस कंपनी को , जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी कहा जाता है , 31 दिसंबर 1600 को ब्रिटेन के महारानी एलिज़ाबेथ ने एक रॉयल चार्टर के द्वारा पूर्व से व्यापर करने का एकमात्र अधिकार दे दिया।  
  13. 1608 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के पश्चमी तट पर सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।  तब व्यापारिक केंद्रों फैक्ट्री के नाम से जाना जाता था। 
  14. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कप्तान हॉकिंस को जहाँगीर के दरबार में शाही आज्ञा लेने के लिए भेजा था। 
  15. 1615 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का दूत , सर टॉमस रो , मुग़ल शासक जहांगीर के दरबार में पंहुचा। 
  16. 1622 में जब ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने एक पुर्तगाली राजकुमारी से शादी की  तो पुर्तगालियों ने उसे बम्बई का द्वीप दहेज़ में दे दिया।  
  17. विजयनगर साम्राज्य का पतन 1565 में हो गया था। 
  18. अंग्रेजों ने दक्षिण भारत में अपनी पहली फैक्ट्री मसूलीपत्तम (आँध्रप्रदेश ) में 1611 में स्थापित किया। परन्तु जल्द ही अंग्रेजों की गतिविधियों का केंद्र मद्रास हो गया जिसका पटटा 1639 में मद्रास के स्थानीय राजा ने उन्हें दे दिया था। 
  19. 1668 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुर्तगाल से बम्बई का द्वीप प्राप्त किया। 
  20. उड़ीसा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया की फैक्ट्री 1633 में खुला। 1651 में इस फैक्ट्री को बंगाल के हुगली में व्यापार करने की इजाजत मिल गयी थी 
  21. 1687 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर्स ने मद्रास के गवर्नर को यह सलाह दी की ' वह एक ऐसी नागरिक और सैनिक शक्ति स्थापित करे और राजस्व का सुरक्षित और इतना बड़ा स्रोत बनाये की भारत में एक बड़े , मजबूत और हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित ब्रिटिश राज्य की नीव डाली जा सके। '
  22. 1686 में अंग्रेजों ने बंगाल के हुगली शहर को नष्ट कर दिया और मुग़लों के विरुद्ध आक्रमण कर दिया। तभी से दोनों के बीच शत्रुता की शुरुआत हुई। 
  23. 1698 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूतानुटी , कलिकता और गोविंदपुरी की जमींदारी प्राप्त कर लिया और वहां पर उन्होंने अपनी फैक्ट्री के अगल बगल फोर्ट विलियम नाम का किला बनाया।  यही गावँ जल्द ही बढ़कर एक नगर बन गया जिसे अब कलकत्ता कहा जाता है। 
  24. 1600 ईस्वी के चार्टर में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को केप ऑफ़ गुड होप के पूर्व में व्यापार करने का एकाधिकार सिर्फ 15 वर्षो का मिला था।  इस कंपनी का स्वरुप एक पूरी तरह बंद निगम या इजारेदारी जैसा था। 
  25. फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 1664 में हुई थी 
  26. 1742 में फ्रांस और इंग्लैंड के बिच युद्ध शुरू हुआ जो 1748 तक चला 
  27. वांडीवाश का युद्ध 22 जनवरी 1760 को इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ा गया था। 
  28. पेरिस का संधि 1763 में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच हुआ। 
  29. प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराजुदौला के बिच हुआ जिसमे सिराजुदौला की हार हुई. 
  30. सिराजुदौला ने 20 जून 1756 को कोलकाता के फोर्ट विलियम पर कब्ज़ा कर लिया था। 
  31. बंगाल के कवि नवीनचंद्र सेन के अनुसार प्लासी के युद्ध के बाद ' भारत के लिए शाश्वत दुःख की काली रात ' का आरम्भ हुआ। 
  32. प्लासी के युद्ध जितने के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब घोषित किया था 
  33.  1760 में  मीर जाफर को बंगाल के नवाब पद से हटना पड़ा और उसके बाद उसका दामाद मीर कासिम को नवाब बनाया गया। 
  34. मीर कासिम को 1763 में बंगाल के नवाब के पद से हटाया गया। तब वह अवध भाग गया जहाँ उसने अवध के नवाब सुजाउद्दौला और भगोड़े मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ एक समझौता किया। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के साथ इन तीनों सहयोगियों की मुठभेड़ 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर में हुई जिसमे ये तीनो की हार हुई। 
  35. बक्सर के युद्ध ने अंग्रेजों को बंगाल , बिहार और उड़ीसा का निर्विवाद शासक बना दिया और अवध भी उनकी अनुसार काम करने लगा। 
  36. 1765 में क्लाइव बंगाल का गवर्नर बना। 
  37. 1763 में अंग्रेजों ने मीर जाफर को दोबारा बंगाल के गवर्नर बना दिया था 
  38. मीर जाफर के मरने के बाद उसका बेटा निजामुद्दौला को नवाब बनाया गया और बदले में उससे 20 फेब्रुअरी 1765 को एक नई संधि पर दस्तखत करा लिया गया।  इस संधि के अनुसार नवाब को अपनी अधिकांश सेना भंग कर देना था और बंगाल का शासन एक नायब सूबेदार के सहारे चलना था। नायब सूबेदार की नियुक्ति कंपनी करती और जिसे कंपनी की स्वीकृति के बिना नहीं हटाया जा सकता था। इस तरह कंपनी ने बंगाल के प्रशासन पर पूरा अधिकार बना लिया 
  39. मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय अभी भी साम्राज्य का नाममात्र का शासक था।  उससे कंपनी ने बंगाल , बिहार और उड़ीसा की दीवानी (अर्थात राजस्व वसूल करने का अधिकार ) प्राप्त कर लिया।  इस तरह बंगाल के ऊपर उसके नियंत्रण से भारत के सबसे समृद्ध प्रान्त का राजस्व कंपनी के हाथ में चला गया। बदले में कंपनी ने शाह आलम द्वितीय को छह लाख रूपए दिया और उसे कौरा और इलाहाबाद जिले भी जीतकर दे दिया।  शाह आलम द्वितीय छह वर्षो तक इलाहाबाद के लिखे में अंग्रेजों का कैदी बनकर रहा। 
  40. 1765 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल की वास्तविक मालिक बन गया था 
  41. 1707 में बंगाल में अकाल पड़ा था। 
  42. 17 मई 1782 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठो के बीच सलबई की संधि हुई 
  43. सहायक संधि के जन्मदाता लार्ड वेलेजली था।  उसने 1798 और 1800 में हैदराबाद के निजाम के साथ सहायक संधि की। 1801 में अवध के नवाब के साथ सहायक संधि की। 
  44. 4 मई 1799 को अपनी राजधानी श्रीरंगपटनम की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान कंपनी के द्वारा मारा गया 
  45. 31 दिसंबर 1802 को पेशवा बाजीराव द्वितीय (मराठा ) और अंग्रेजों के बीच बसाई की संधि हुई। 
  46. सर चार्ल्स नेपियर ने 1843 में सिंध का अधिग्रहण कर लिया 
  47. 1839 में महाराज रंजीत सिंह की मृत्यु हो गयी। 
  48. लार्ड डलहौजी 1848 में भारत का गवर्नर जनरल बना 
  49. डलहौजी ने राज्य विलय का सिद्धांत (डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स ) अपनाया। 
  50. इसी सिद्धांत पर डलहौजी ने 1848 में सतारा (महाराष्ट्र ) और 1854 में नागपुर और झाँसी समेत अनेक राज्यों का अधिग्रहण किया 
  51. डलहौजी ने 1856 में अवध को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया 
  52. कच्चे कपास की ब्रिटेन में बढ़ती मांग के चलते लार्ड डलहौजी ने 1853 में अवध के नवाब से बरार का कपास उत्पादक प्रान्त ले लिया था। 

INDIAN STATES AND SOCIETY IN THE EIGHTEENTH CENTURY

              अठरहवीं सदी में भारत में राज्य और समाज : महत्वपूर्ण तथ्य (विपिन चंद्रा )                      

  1. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह ने 1724 में हैदराबाद राज्य की स्थापना की थी।  औरंगज़ेब के बाद के समय के नवाबों में निजाम -उल - मुल्क आसफ़जाह का महत्वपूर्ण स्थान था। निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह ने सैयद बंधुओं को गद्दी से हटाने में अहम् भूमिका निभाई थी 
  2. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह को दक्कन का वायसरॉय का ख़िताब प्राप्त हुआ था। 
  3. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह 1722  से 1724  तक दक्कन  का वजीर के पद पर  रहा। था 
  4. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह का दीवान एक हिन्दू था जिसका नाम पूरनचंद था। 
  5. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह की मृत्यु 1748 में हुई। 
  6. कर्नाटक , दक्कन मुग़ल का एक सूबा (प्रदेश ) था और इस तरह वह हैदराबाद के निजाम के अधिकार के अन्तर्गत आता था। 
  7. केंद्रीय सत्ता की बढ़ती कमजोरी का फायदा उठाकर असाधारण योग्यता वाले दो व्यक्तियों , मुर्शिद कुली खान और अली वर्दी खान ने  बंगाल को वस्तुतः स्वतंत्र बना दिया। 
  8. मुर्शिद कुली खान को 1717 में बंगाल का सूबेदार बनाया गया था , मगर उसका वास्तविक शासन 1700 से ही था जब उसे दिवान बनाया गया था। 
  9. मुर्शिद कुली खान की मृत्यु 1727 में हुआ। 
  10. मुर्शिद कुली खान के बाद उसका दामाद  शुजाउद्दीन ने बंगाल पर 1739 तक शासन  किया अर्थात शुजाउद्दीन ने बंगाल पर 1727 से लेकर 1739 तक शासन किया। 
  11.  शुजाउद्दीन के बाद उसका बेटा सरफराज खान बंगाल के शासक बना जिसे उसी साल अर्थात 1739 में ही गद्दी से हटाकर अलीवर्दी  खान बंगाल का   नवाब बना। 
  12. मुर्शिद कुली खान ने नए भू -राजस्व बंदोबस्त के जरिए जागीर भूमि के एक बड़े भाग को खालसा भूमि बना दिया और इजारा व्यवस्था (ठेके पर भू -राजस्व वसूल करने की व्यवस्था ) की शुरुआत की थी। 
  13. मुर्शिद कुली खान ने बंगाल में एक नए भू -अभिजात वर्ग को जन्म दिया। 
  14. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रवृति 1707 के बाद अपनी माँगों को मनवाने के लिए सैनिक शक्ति का उपयोग करने या उसके इस्तेमाल की धमकी देने की होने लगी थी. 
  15. अलीवर्दी खान ने अंग्रेजों और फ्रांसीसियों को कलकत्ता और चंद्रनगर के अपने कारखाओं की किलेवंदी करने की इजाजत नहीं दिया था। 
  16. अलीवर्दी खान को मराठों के हमलों से तंग आकर उन्हें उड़ीसा  का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ा था। 
  17.  1756 -57 में अंग्रेजी  ईस्ट इंडिया कंपनी ने अली  वर्दी खान के उत्तराधिकारी सिराजुदौला के खिलाफ लड़ाई का ऐलान कर दिया था। 
  18. अवध के स्वायत स्वायत राज्य का संस्थापक सआदत खान बुरहान -उल -मुल्क था जिसे 1772 में अवध  सूबेदार बनाया गया था। 
  19. सआदत खान ने 1723 में नया  बंदोबस्त (रेवेन्यू सेटलमेंट ) को लागु किया था। 
  20. सआदत खान की मृत्यु 1739 में हुआ था। 
  21. सआदत खान की मृत्यु के बाद उसका भतीजा सफ़दर जंग ने अवध की गद्दी संभाली। 
  22. लखनऊ बहुत ज़माने से अवध का एक महत्वपूर्ण शहर था और 1775 के बाद वह अवध के नवाबों का निवास स्थान बन गया। 
  23. लखनऊ हस्तशिल्प के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हुआ था। 
  24. दक्षिण भारत में हैदराबाद के पास हैदर अली के अधीन जिस सबसे महत्वपूर्ण सत्ता का उदय हुआ , वह मैसूर था। 
  25. 18 वीं सदी के शुरू में नंजराज (सर्वाधिकारी ) और देवराज (दलबई )नाम के दो मंत्रियों ने मैसूर की शक्ति अपने हाथ में ले रखी थी , इस प्रकार वहां के राजा चिक्का कृष्ण राज को उन्होंने कठपुतली में बदल दिया था। 
  26. हैदर अली का जन्म 1721 में एक अत्यंत सामान्य परिवार में हुआ था। 
  27. 1755 में डिंडीगुल में हैदर अली ने एक आधुनिक शस्त्रागार स्थापित किया था।  इसमें उसने फ्रांसीसी विशेषज्ञों की मदद ली थी। 
  28. हैदर अली ने 1761 में नंजराज को सत्ता से अलग कर दिया तथा मैसूर राज्य पर अपना अधिकार कायम कर लिया। 
  29. हैदर अली की मृत्यु 1782 में द्वितीय आंग्ल -मैसूर युद्ध के दौरान हुयी थी। 
  30. हैदर अली के बाद उसका बेटा टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा। 
  31. टीपू सुल्तान की मृत्यु 1799 में हुई। वह  अंग्रेजों द्वारा युद्ध में मारा गया था।  इस प्रकार टीपू सुल्तान का शासन काल 1782 से लेकर 1799 तक रहा। 
  32. टीपू सुल्तान एक जटिल चरित्र वाला और नए विचारों को ढूंढ निकलने वाला व्यक्ति था।  उसने एक नए कैलेंडर को लागु किया। 
  33. टीपू सुल्तान को फ्रांसीसी क्रांति में गहरी दिलचस्पी थी। उसने श्रीरंगपट्टम में स्वतंत्रता -वृक्ष लगाया और एक जैकोबिन क्लब का सदस्य बन गया। 
  34.  टीपू  सुल्तान ने जागीर देने की प्रथा को ख़त्म करके राजकीय आय बढ़ने की कोशिश की थी। 
  35. टीपू सुल्तान की पैदल सेना यूरोप  की शैली में बंदूकों और संगीनों से लैस थी , लेकिन इन हथियारों को मैसूर में ही बनाया गया था। 
  36. टीपू सुल्तान ने 1796 के बाद एक आधुनिक नौ सेना खड़ी करने की कोशिश की थी। 
  37. टीपू सुल्तान की एक अत्यंत प्रिय उक्ति थी की एक "शेर की तरह एक दिन जीना बेहतर है लेकिन भेड़ की तरह लम्बी जिंदगी जीना अच्छा नहीं। " इसी विश्वास का पालन करते हुए वह श्रीरंगपत्तनम के द्वार पर लड़ता हुआ मरा था। 
  38.  1799  में ब्रिटिश लोगों ने जब टीपू सुल्तान को पराजित कर उसे मार डाला और मैसूर पर कब्ज़ा कर लिया तो यह देखकर उनको आश्चर्य हुआ की मैसूर का किसान ब्रिटिश शासित राज्य मद्रास के किसान की  तुलना में कहीं अधिक  संपन्न और खुशहाल था।  सर जॉन शोर 1793 -1798 के दौरान गवर्नर -जनरल था।  उसने बाद में लिखा था , "टीपू के राज्य के किसानों को संरक्षण मिलता था  तथा उनको श्रम के लिए प्रोत्साहित और पुरस्कार दिया जाता था। "टीपू सुल्तान के जमाने के मैसूर के बारे में एक अन्य ब्रिटिश पर्यवेक्षक ने लिखा था , "यह राज्य खेतीबाड़ी में बढ़ा -चढ़ा , परिश्रमी लोगों की घनी आबादी वाला , नए -नए नगरों  वाला और वाणिज्य  व्यापार में बढ़ोतरी वाला था। 
  39. 1791 में मराठा घुड़सवारों ने श्रृंगेरी के शारदा मंदिर को लुटा था तो टीपू सुल्तान ने शारदा माँ की प्रतिमा बनवाने के लिए पैसे दिए थे। 
  40. रंगनाथ का प्रसिद्ध मंदिर टीपू सुल्तान के महल से करीब 100 गज की दुरी  पर था। 
  41. 18 वीं सदी में केरल  बहुत बड़ी संख्या में सामंत सरदारों और राजाओं में बंटा हुआ था।  इनमे से चार प्रमुख राज्य इस प्रकार थे - कालीकट , चिरक्कल , कोचीन और त्रावणकोर। 
  42. राजा मार्तंड वर्मा त्रावणकोर राज्य के राजा थे।  वे बहुत ही अग्रणी और योग्य शासक थे इसलिए उनके समय में त्रावणकोर राज्य को केरल में प्रमुखता मिली। 
  43. केरल के तीन बड़े राज्यों - कोचीन , त्रावणकोर और कालीकट ने 1763 तक सभी छोटे रजवाड़ों को विलीन या अधीन कर लिया था। 
  44. हैदर अली ने केरल पर अपना आक्रमण 1766 में शुरू किया और अंत में कालीकट के जमोरिन के इलाकों सहित कोचीन तक उत्तरी केरल को भी जीत लिया। 
  45. अठरहवीं सदी के उत्तरार्ध में त्रावणकोर की राजधानी त्रिवेंद्रम , संस्कृत विद्वता का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया था। 
  46. मार्तण्ड वर्मा का उत्तराधिकारी राम वर्मा था जो खुद कवि , विद्वान , संगीतज्ञ , अभिनेता और सुसंकृत वयक्ति था वह अंग्रेजी में धाराप्रवाह बातचीत करता था। 
  47. अठरहवीं सदी का सबसे श्रेष्ठ राजपूत शासक आमेर का सवाई जयसिंह  (1681 - 1743 ) था। 
  48. सवाई जयसिंह ने जाटों से लिए गए इलाके में जयपुर शहर की स्थापना की और उसे विज्ञान और कला का महान केंद्र बना दिया। 
  49. जयपुर का निर्माण बिल्कुल वैज्ञानिक सिंद्धान्तों के आधार पर और एक नियमित योजना के तहत हुआ था।  उसकी चौड़ी सड़कें एक -दूसरे को समकोण पर कटती हैं 
  50. राजा जयसिंह विज्ञान प्रेमी शासक था। वह एक महान खगोलशास्त्री भी था। 
  51. जयसिंह ने दिल्ली , जयपुर , उज्जैन और मथुरा में बिलकुल सही और आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित पर्यवेक्षणशालाएँ बनाई।  इसके कुछ उपकरण खुद जयसिंह के बनाये हुए थे। 
  52. राजा जयसिंह ने सारणियों का एक सेट तैयार किया जिससे लोगों को खगोलशास्त्र सम्बन्धी प्रवेक्षण करने में सहायता मिले।  इसका नाम "जिज  मुहम्मदशाही " था। उसने यूक्लिड की 'रेखागणित के तत्व ' का अनुवाद संस्कृत में कराया था। 
  53. राजा जयसिंह ने त्रिकोणमिति की बहुत  और लघुगणकों को बनाने और उनकी इस्तेमाल सम्बन्धी नेपियर की रचना का अनुवाद संस्कृत में कराया था। 
  54. राजा जयसिंह ने जयपुर पर 1699 से 1743 तक , लगभग 44 वर्षों तक शासन किया। 
  55. मथुरा के आसपास के जाट किसानो ने 1669 और फिर 1688 में अपने जाट जमींदारों के नेतृत्व में विद्रोह किये।  विद्रोह को तो कुचल दिया गया परन्तु इलाका अशांत ही बना रहा।  जाट खेतिहरों की एक जाती है जो दिल्ली , आगरा  और मथुरा के आस पास के इलाकों में रहते थे। 
  56. भरतपुर के जाट राज्य की स्थापना चुरामन और बदनसिंह ने की था। 
  57. जाटों के प्रसिद्ध राजा सूरजमल (1756 से 1763  ) था। वह 1763 में मर गया। 
  58. अली मुहम्मद खान ने रुहेलखंड नमक राज्य की स्थापना किया।  यह राज्य हिमालय की तराई में दक्षिण में गंगा और उत्तर में कुमायूं की पहाड़ियों तक फैला हुआ था।  इसकी राजधानी पहले बरेली में आँवला में थी और बाद में रामपुर चली गयी। 
  59. सिख धर्म  की शुरुआत गुरु नानक ने पंद्रहवी शताब्दी में की। 
  60. एक लड़ाकू समुदाय के रूप में सिखों को बदलने का काम गुरु हर गोविन्द (1606 -1645 ) ने आरम्भ किया।  मगर अपने दसवें और आखिरी गुरु गोविन्द सिंह (1666 -1708 ) के नेतृत्व में सिख राजनीतिक और फौजी ताकत बने। 
  61. औरंगजेब के मरने के बाद गुरु गोविंद सिंह ने बहादुर शाह का साथ दिया। 
  62. गुरु गोविन्द सिंह , बहादुर शाह के साथ दक्कन गए जहाँ उन्हें एक पठान नौकर ने विश्वासघात कर मार डाला। 
  63. गुरु गोविन्द सिंह के मृत्यु के बाद गुरु की परम्परा ख़त्म हो गयी।  सिखों का नेतृत्व उनके विश्वासपात्र शिष्य , बंदा सिंह के हाथों में चला गया , जो बंदा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
  64. बंदा बहादुर को 1715 में पकड़ लिया गया और मार दिया गया। 
  65. रणजीत सिंह ने 1799 में लाहौर और 1802 में अमृतसर पर कब्ज़ा किया। 
  66. राजा रणजीत सिंह ने लाहौर में तोप बनाने के आधुनिक कारखाने खोले तथा उनमे मुसलमान तोपचियों को काम पर लगाया। 
  67. ऐसा कहा जाता है की रणजीत सिंह की फ़ौज एशिया की दूसरी सबसे अच्छी फ़ौज थी।  पहला स्थान अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज का था। 
  68. रणजीत सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है की वह धर्मपरायण सिख होते हुए भी "अपने सिंहासन से उतारकर मुसलमान फकीरों के पैर की धूल अपनी लम्बी दाढ़ी से झाड़ता था ". 
  69. रणजीत सिंह का सबसे प्रमुख और विश्वासपात्र मंत्री 'फ़क़ीर अजीजुद्दीन ' था। 
  70. रंजीत सिंह का  वित् मंत्री दीवान दीनानाथ था। 
  71. शिवाजी के पोते साहू को औरंगजेब ने 1689 से कैद कर रखा था।  साहू को 1707 में औरंगजेब की मौत के बाद रिहा किया गया। 
  72. साहू ने 1713 में बालाजी विश्वनाथ (जो एक ब्राह्मण था ) को मराठा साम्राज्य का पेशवा अर्थात मुख्य -प्रधान बनाया। 
  73. बालाजी विश्वनाथ 1719 में सैयद अली खां के साथ दिल्ली गया और फर्रखसियर  का तख्ता पलटने में सैयद बंधुओं की मदद की। 
  74. बालाजी विश्वनाथ 1720 में मर गया।  उसकी जगह पर उसका 20 वर्ष का बेटा बाजीराव प्रथम पेशवा बना। 
  75. बाजीराव प्रथम को "शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध का सबसे बड़ा प्रतिपादक ' कहा जाता है। 
  76. बाजीराव प्रथम की मृत्यु अप्रैल  1740 में हुआ। 
  77. बाजीराव प्रथम ने 1733 में जंजीरा के  सिदियों  के खिलाफ एक लम्बा शक्तिशाली अभियान आरम्भ किया और अंत में उन्हें मुख्य भूमि से निकाल बहार किया। 
  78. बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद उसका अठारह साल का बेटा बालाजी बाजीराव (जो नाना साहब के नाम से जाना जाता था ) पेशवा बना। वह 1740 से 1761 तक पेशवा रहा। 
  79. मराठों के बार बार आक्रमण के चलते 1751 में बंगाल के नवाब को मजबूर होकर उड़ीसा को मराठों के हवाले करना पड़ा था। 
  80. 14 जनवरी 1761 को पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई।  यह मराठा और अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली की बीच हुआ।  जिसमे अहमद शाह अब्दाली विजयी रहा। 
  81. सवाई माधव राव जो 1761 में मराठो का पेशवा बना , उसके समर्थकों के नेता नाना फडणवीस था। 
  82. दूसरा आंग्ल -मराठा युद्ध (1803 -1805 ) और तीसरा आंग्ल मराठा युद्ध (1816 -1819 ) में हुआ।  दोनों युद्धों में अंग्रेज विजयी रहे। 
  83. अठरहवीं सदी में भारत , फारस की खाड़ी के इलाकों से मोती , कच्चा रेशम , ऊन , खजूर , मेवे  और गुलाब जल ;  अरब से कहवा , सोना , दवाएं और शहद ; चीन से चाय , चीनी मिट्टी  और रेशम ; तिब्बत से सोना , कस्तूरी और ऊनी कपड़ा ; सिंगापुर से टिन ; इंडोनेशियाई द्वीपों से मसाले, इत्र , शराब और चीनी ; अफ्रीका से हाथी दाँत और दवाएं ; और यूरोप से ऊनी कपड़ा , तांबा , लोहा और सीसा जैसे वस्तुए और कागज का आयात करता था।  
  84. अठरहवीं सदी में भारत के निर्यात की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी सूती वस्त्र।  भारतीय सूती कपड़े अपने उत्कृष्टता के लिए सारी दुनिया में मशहूर थे और उनकी हर जगह मांग थी. भारत कच्चा रेशम और रेशमी कपड़े , लोहे का सामान , नील , शोरा , अफीम , चावल , गेहूँ , चीनी , काली मिर्च और अन्य मसाले , रत्न और औषधियों भी निर्यात करता था। 
  85. अठरहवीं और उन्नीसवीं सदी के आसपास औरतों को तंग बहुत ही काम या न के बराबर किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में एक यूरोपीय पर्यटक एब्व जे. ए। दुबाचे ने लिखा की 'एक हिन्दू  भी , यहाँ तक की अत्यंत भीड़ -भाड़ वाली जगहों में भी ,  अकेले जा सकती , और उसे अकर्मण्य आवारा लोगो की ढ़ीठ निगाहों और दिल्ल्गीयों का डर नहीं होता। ..... ऐसा मकान जिसमे केवल औरतें रहती है एक ऐसा पवित्र स्थान है जिसकी मर्यादा भंग करने का ख्याल कोई अत्यंत निर्लज्ज , लम्पट स्वप्न में भी नहीं ला सकता। '
  86. अहल्या बाई ने इंदौर पर 1766 से 1796 तक शासन किया। 
  87. कुंचन नाम्बियार केरल का एक महान कवि था। 
  88. तायुमानवर (1706-1744 ) तमिल में सित्तर काव्य का एक उत्कृष्ट प्रवर्तक था। 
  89. पंजाबी के मशहूर  महाकाव्य , हीर -राँझा की रचना वारिश शाह ने अठरहवीं सदी में किया था। 
  90. सिंधी साहित्य के प्रमुख कवि अब्दुल लतीफ़ ने अपना प्रसिद्ध कविता संग्रह 'रिसालो ' की रचना अठरहवीं सदी में  ही किया था। सचल और सामी इस शताब्दी के अन्य महान सिंधी कवि थे.

INDIAN STATES AND SOCIETY IN THE EIGHTEENTH CENTURY

              अठरहवीं सदी में भारत में राज्य और समाज : महत्वपूर्ण तथ्य (विपिन चंद्रा )                      

  1. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह ने 1724 में हैदराबाद राज्य की स्थापना की थी।  औरंगज़ेब के बाद के समय के नवाबों में निजाम -उल - मुल्क आसफ़जाह का महत्वपूर्ण स्थान था। निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह ने सैयद बंधुओं को गद्दी से हटाने में अहम् भूमिका निभाई थी 
  2. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह को दक्कन का वायसरॉय का ख़िताब प्राप्त हुआ था। 
  3. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह 1722  से 1724  तक दक्कन  का वजीर के पद पर  रहा। था 
  4. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह का दीवान एक हिन्दू था जिसका नाम पूरनचंद था। 
  5. निजाम -उल -मुल्क आसफ़जाह की मृत्यु 1748 में हुई। 
  6. कर्नाटक , दक्कन मुग़ल का एक सूबा (प्रदेश ) था और इस तरह वह हैदराबाद के निजाम के अधिकार के अन्तर्गत आता था। 
  7. केंद्रीय सत्ता की बढ़ती कमजोरी का फायदा उठाकर असाधारण योग्यता वाले दो व्यक्तियों , मुर्शिद कुली खान और अली वर्दी खान ने  बंगाल को वस्तुतः स्वतंत्र बना दिया। 
  8. मुर्शिद कुली खान को 1717 में बंगाल का सूबेदार बनाया गया था , मगर उसका वास्तविक शासन 1700 से ही था जब उसे दिवान बनाया गया था। 
  9. मुर्शिद कुली खान की मृत्यु 1727 में हुआ। 
  10. मुर्शिद कुली खान के बाद उसका दामाद  शुजाउद्दीन ने बंगाल पर 1739 तक शासन  किया अर्थात शुजाउद्दीन ने बंगाल पर 1727 से लेकर 1739 तक शासन किया। 
  11.  शुजाउद्दीन के बाद उसका बेटा सरफराज खान बंगाल के शासक बना जिसे उसी साल अर्थात 1739 में ही गद्दी से हटाकर अलीवर्दी  खान बंगाल का   नवाब बना। 
  12. मुर्शिद कुली खान ने नए भू -राजस्व बंदोबस्त के जरिए जागीर भूमि के एक बड़े भाग को खालसा भूमि बना दिया और इजारा व्यवस्था (ठेके पर भू -राजस्व वसूल करने की व्यवस्था ) की शुरुआत की थी। 
  13. मुर्शिद कुली खान ने बंगाल में एक नए भू -अभिजात वर्ग को जन्म दिया। 
  14. अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रवृति 1707 के बाद अपनी माँगों को मनवाने के लिए सैनिक शक्ति का उपयोग करने या उसके इस्तेमाल की धमकी देने की होने लगी थी. 
  15. अलीवर्दी खान ने अंग्रेजों और फ्रांसीसियों को कलकत्ता और चंद्रनगर के अपने कारखाओं की किलेवंदी करने की इजाजत नहीं दिया था। 
  16. अलीवर्दी खान को मराठों के हमलों से तंग आकर उन्हें उड़ीसा  का एक बड़ा हिस्सा देना पड़ा था। 
  17.  1756 -57 में अंग्रेजी  ईस्ट इंडिया कंपनी ने अली  वर्दी खान के उत्तराधिकारी सिराजुदौला के खिलाफ लड़ाई का ऐलान कर दिया था। 
  18. अवध के स्वायत स्वायत राज्य का संस्थापक सआदत खान बुरहान -उल -मुल्क था जिसे 1772 में अवध  सूबेदार बनाया गया था। 
  19. सआदत खान ने 1723 में नया  बंदोबस्त (रेवेन्यू सेटलमेंट ) को लागु किया था। 
  20. सआदत खान की मृत्यु 1739 में हुआ था। 
  21. सआदत खान की मृत्यु के बाद उसका भतीजा सफ़दर जंग ने अवध की गद्दी संभाली। 
  22. लखनऊ बहुत ज़माने से अवध का एक महत्वपूर्ण शहर था और 1775 के बाद वह अवध के नवाबों का निवास स्थान बन गया। 
  23. लखनऊ हस्तशिल्प के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित हुआ था। 
  24. दक्षिण भारत में हैदराबाद के पास हैदर अली के अधीन जिस सबसे महत्वपूर्ण सत्ता का उदय हुआ , वह मैसूर था। 
  25. 18 वीं सदी के शुरू में नंजराज (सर्वाधिकारी ) और देवराज (दलबई )नाम के दो मंत्रियों ने मैसूर की शक्ति अपने हाथ में ले रखी थी , इस प्रकार वहां के राजा चिक्का कृष्ण राज को उन्होंने कठपुतली में बदल दिया था। 
  26. हैदर अली का जन्म 1721 में एक अत्यंत सामान्य परिवार में हुआ था। 
  27. 1755 में डिंडीगुल में हैदर अली ने एक आधुनिक शस्त्रागार स्थापित किया था।  इसमें उसने फ्रांसीसी विशेषज्ञों की मदद ली थी। 
  28. हैदर अली ने 1761 में नंजराज को सत्ता से अलग कर दिया तथा मैसूर राज्य पर अपना अधिकार कायम कर लिया। 
  29. हैदर अली की मृत्यु 1782 में द्वितीय आंग्ल -मैसूर युद्ध के दौरान हुयी थी। 
  30. हैदर अली के बाद उसका बेटा टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा। 
  31. टीपू सुल्तान की मृत्यु 1799 में हुई। वह  अंग्रेजों द्वारा युद्ध में मारा गया था।  इस प्रकार टीपू सुल्तान का शासन काल 1782 से लेकर 1799 तक रहा। 
  32. टीपू सुल्तान एक जटिल चरित्र वाला और नए विचारों को ढूंढ निकलने वाला व्यक्ति था।  उसने एक नए कैलेंडर को लागु किया। 
  33. टीपू सुल्तान को फ्रांसीसी क्रांति में गहरी दिलचस्पी थी। उसने श्रीरंगपट्टम में स्वतंत्रता -वृक्ष लगाया और एक जैकोबिन क्लब का सदस्य बन गया। 
  34.  टीपू  सुल्तान ने जागीर देने की प्रथा को ख़त्म करके राजकीय आय बढ़ने की कोशिश की थी। 
  35. टीपू सुल्तान की पैदल सेना यूरोप  की शैली में बंदूकों और संगीनों से लैस थी , लेकिन इन हथियारों को मैसूर में ही बनाया गया था। 
  36. टीपू सुल्तान ने 1796 के बाद एक आधुनिक नौ सेना खड़ी करने की कोशिश की थी। 
  37. टीपू सुल्तान की एक अत्यंत प्रिय उक्ति थी की एक "शेर की तरह एक दिन जीना बेहतर है लेकिन भेड़ की तरह लम्बी जिंदगी जीना अच्छा नहीं। " इसी विश्वास का पालन करते हुए वह श्रीरंगपत्तनम के द्वार पर लड़ता हुआ मरा था। 
  38.  1799  में ब्रिटिश लोगों ने जब टीपू सुल्तान को पराजित कर उसे मार डाला और मैसूर पर कब्ज़ा कर लिया तो यह देखकर उनको आश्चर्य हुआ की मैसूर का किसान ब्रिटिश शासित राज्य मद्रास के किसान की  तुलना में कहीं अधिक  संपन्न और खुशहाल था।  सर जॉन शोर 1793 -1798 के दौरान गवर्नर -जनरल था।  उसने बाद में लिखा था , "टीपू के राज्य के किसानों को संरक्षण मिलता था  तथा उनको श्रम के लिए प्रोत्साहित और पुरस्कार दिया जाता था। "टीपू सुल्तान के जमाने के मैसूर के बारे में एक अन्य ब्रिटिश पर्यवेक्षक ने लिखा था , "यह राज्य खेतीबाड़ी में बढ़ा -चढ़ा , परिश्रमी लोगों की घनी आबादी वाला , नए -नए नगरों  वाला और वाणिज्य  व्यापार में बढ़ोतरी वाला था। 
  39. 1791 में मराठा घुड़सवारों ने श्रृंगेरी के शारदा मंदिर को लुटा था तो टीपू सुल्तान ने शारदा माँ की प्रतिमा बनवाने के लिए पैसे दिए थे। 
  40. रंगनाथ का प्रसिद्ध मंदिर टीपू सुल्तान के महल से करीब 100 गज की दुरी  पर था। 
  41. 18 वीं सदी में केरल  बहुत बड़ी संख्या में सामंत सरदारों और राजाओं में बंटा हुआ था।  इनमे से चार प्रमुख राज्य इस प्रकार थे - कालीकट , चिरक्कल , कोचीन और त्रावणकोर। 
  42. राजा मार्तंड वर्मा त्रावणकोर राज्य के राजा थे।  वे बहुत ही अग्रणी और योग्य शासक थे इसलिए उनके समय में त्रावणकोर राज्य को केरल में प्रमुखता मिली। 
  43. केरल के तीन बड़े राज्यों - कोचीन , त्रावणकोर और कालीकट ने 1763 तक सभी छोटे रजवाड़ों को विलीन या अधीन कर लिया था। 
  44. हैदर अली ने केरल पर अपना आक्रमण 1766 में शुरू किया और अंत में कालीकट के जमोरिन के इलाकों सहित कोचीन तक उत्तरी केरल को भी जीत लिया। 
  45. अठरहवीं सदी के उत्तरार्ध में त्रावणकोर की राजधानी त्रिवेंद्रम , संस्कृत विद्वता का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया था। 
  46. मार्तण्ड वर्मा का उत्तराधिकारी राम वर्मा था जो खुद कवि , विद्वान , संगीतज्ञ , अभिनेता और सुसंकृत वयक्ति था वह अंग्रेजी में धाराप्रवाह बातचीत करता था। 
  47. अठरहवीं सदी का सबसे श्रेष्ठ राजपूत शासक आमेर का सवाई जयसिंह  (1681 - 1743 ) था। 
  48. सवाई जयसिंह ने जाटों से लिए गए इलाके में जयपुर शहर की स्थापना की और उसे विज्ञान और कला का महान केंद्र बना दिया। 
  49. जयपुर का निर्माण बिल्कुल वैज्ञानिक सिंद्धान्तों के आधार पर और एक नियमित योजना के तहत हुआ था।  उसकी चौड़ी सड़कें एक -दूसरे को समकोण पर कटती हैं 
  50. राजा जयसिंह विज्ञान प्रेमी शासक था। वह एक महान खगोलशास्त्री भी था। 
  51. जयसिंह ने दिल्ली , जयपुर , उज्जैन और मथुरा में बिलकुल सही और आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित पर्यवेक्षणशालाएँ बनाई।  इसके कुछ उपकरण खुद जयसिंह के बनाये हुए थे। 
  52. राजा जयसिंह ने सारणियों का एक सेट तैयार किया जिससे लोगों को खगोलशास्त्र सम्बन्धी प्रवेक्षण करने में सहायता मिले।  इसका नाम "जिज  मुहम्मदशाही " था। उसने यूक्लिड की 'रेखागणित के तत्व ' का अनुवाद संस्कृत में कराया था। 
  53. राजा जयसिंह ने त्रिकोणमिति की बहुत  और लघुगणकों को बनाने और उनकी इस्तेमाल सम्बन्धी नेपियर की रचना का अनुवाद संस्कृत में कराया था। 
  54. राजा जयसिंह ने जयपुर पर 1699 से 1743 तक , लगभग 44 वर्षों तक शासन किया। 
  55. मथुरा के आसपास के जाट किसानो ने 1669 और फिर 1688 में अपने जाट जमींदारों के नेतृत्व में विद्रोह किये।  विद्रोह को तो कुचल दिया गया परन्तु इलाका अशांत ही बना रहा।  जाट खेतिहरों की एक जाती है जो दिल्ली , आगरा  और मथुरा के आस पास के इलाकों में रहते थे। 
  56. भरतपुर के जाट राज्य की स्थापना चुरामन और बदनसिंह ने की था। 
  57. जाटों के प्रसिद्ध राजा सूरजमल (1756 से 1763  ) था। वह 1763 में मर गया। 
  58. अली मुहम्मद खान ने रुहेलखंड नमक राज्य की स्थापना किया।  यह राज्य हिमालय की तराई में दक्षिण में गंगा और उत्तर में कुमायूं की पहाड़ियों तक फैला हुआ था।  इसकी राजधानी पहले बरेली में आँवला में थी और बाद में रामपुर चली गयी। 
  59. सिख धर्म  की शुरुआत गुरु नानक ने पंद्रहवी शताब्दी में की। 
  60. एक लड़ाकू समुदाय के रूप में सिखों को बदलने का काम गुरु हर गोविन्द (1606 -1645 ) ने आरम्भ किया।  मगर अपने दसवें और आखिरी गुरु गोविन्द सिंह (1666 -1708 ) के नेतृत्व में सिख राजनीतिक और फौजी ताकत बने। 
  61. औरंगजेब के मरने के बाद गुरु गोविंद सिंह ने बहादुर शाह का साथ दिया। 
  62. गुरु गोविन्द सिंह , बहादुर शाह के साथ दक्कन गए जहाँ उन्हें एक पठान नौकर ने विश्वासघात कर मार डाला। 
  63. गुरु गोविन्द सिंह के मृत्यु के बाद गुरु की परम्परा ख़त्म हो गयी।  सिखों का नेतृत्व उनके विश्वासपात्र शिष्य , बंदा सिंह के हाथों में चला गया , जो बंदा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
  64. बंदा बहादुर को 1715 में पकड़ लिया गया और मार दिया गया। 
  65. रणजीत सिंह ने 1799 में लाहौर और 1802 में अमृतसर पर कब्ज़ा किया। 
  66. राजा रणजीत सिंह ने लाहौर में तोप बनाने के आधुनिक कारखाने खोले तथा उनमे मुसलमान तोपचियों को काम पर लगाया। 
  67. ऐसा कहा जाता है की रणजीत सिंह की फ़ौज एशिया की दूसरी सबसे अच्छी फ़ौज थी।  पहला स्थान अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज का था। 
  68. रणजीत सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है की वह धर्मपरायण सिख होते हुए भी "अपने सिंहासन से उतारकर मुसलमान फकीरों के पैर की धूल अपनी लम्बी दाढ़ी से झाड़ता था ". 
  69. रणजीत सिंह का सबसे प्रमुख और विश्वासपात्र मंत्री 'फ़क़ीर अजीजुद्दीन ' था। 
  70. रंजीत सिंह का  वित् मंत्री दीवान दीनानाथ था। 
  71. शिवाजी के पोते साहू को औरंगजेब ने 1689 से कैद कर रखा था।  साहू को 1707 में औरंगजेब की मौत के बाद रिहा किया गया। 
  72. साहू ने 1713 में बालाजी विश्वनाथ (जो एक ब्राह्मण था ) को मराठा साम्राज्य का पेशवा अर्थात मुख्य -प्रधान बनाया। 
  73. बालाजी विश्वनाथ 1719 में सैयद अली खां के साथ दिल्ली गया और फर्रखसियर  का तख्ता पलटने में सैयद बंधुओं की मदद की। 
  74. बालाजी विश्वनाथ 1720 में मर गया।  उसकी जगह पर उसका 20 वर्ष का बेटा बाजीराव प्रथम पेशवा बना। 
  75. बाजीराव प्रथम को "शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध का सबसे बड़ा प्रतिपादक ' कहा जाता है। 
  76. बाजीराव प्रथम की मृत्यु अप्रैल  1740 में हुआ। 
  77. बाजीराव प्रथम ने 1733 में जंजीरा के  सिदियों  के खिलाफ एक लम्बा शक्तिशाली अभियान आरम्भ किया और अंत में उन्हें मुख्य भूमि से निकाल बहार किया। 
  78. बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद उसका अठारह साल का बेटा बालाजी बाजीराव (जो नाना साहब के नाम से जाना जाता था ) पेशवा बना। वह 1740 से 1761 तक पेशवा रहा। 
  79. मराठों के बार बार आक्रमण के चलते 1751 में बंगाल के नवाब को मजबूर होकर उड़ीसा को मराठों के हवाले करना पड़ा था। 
  80. 14 जनवरी 1761 को पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई।  यह मराठा और अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली की बीच हुआ।  जिसमे अहमद शाह अब्दाली विजयी रहा। 
  81. सवाई माधव राव जो 1761 में मराठो का पेशवा बना , उसके समर्थकों के नेता नाना फडणवीस था। 
  82. दूसरा आंग्ल -मराठा युद्ध (1803 -1805 ) और तीसरा आंग्ल मराठा युद्ध (1816 -1819 ) में हुआ।  दोनों युद्धों में अंग्रेज विजयी रहे। 
  83. अठरहवीं सदी में भारत , फारस की खाड़ी के इलाकों से मोती , कच्चा रेशम , ऊन , खजूर , मेवे  और गुलाब जल ;  अरब से कहवा , सोना , दवाएं और शहद ; चीन से चाय , चीनी मिट्टी  और रेशम ; तिब्बत से सोना , कस्तूरी और ऊनी कपड़ा ; सिंगापुर से टिन ; इंडोनेशियाई द्वीपों से मसाले, इत्र , शराब और चीनी ; अफ्रीका से हाथी दाँत और दवाएं ; और यूरोप से ऊनी कपड़ा , तांबा , लोहा और सीसा जैसे वस्तुए और कागज का आयात करता था।  
  84. अठरहवीं सदी में भारत के निर्यात की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी सूती वस्त्र।  भारतीय सूती कपड़े अपने उत्कृष्टता के लिए सारी दुनिया में मशहूर थे और उनकी हर जगह मांग थी. भारत कच्चा रेशम और रेशमी कपड़े , लोहे का सामान , नील , शोरा , अफीम , चावल , गेहूँ , चीनी , काली मिर्च और अन्य मसाले , रत्न और औषधियों भी निर्यात करता था। 
  85. अठरहवीं और उन्नीसवीं सदी के आसपास औरतों को तंग बहुत ही काम या न के बराबर किया जाता था। उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में एक यूरोपीय पर्यटक एब्व जे. ए। दुबाचे ने लिखा की 'एक हिन्दू  भी , यहाँ तक की अत्यंत भीड़ -भाड़ वाली जगहों में भी ,  अकेले जा सकती , और उसे अकर्मण्य आवारा लोगो की ढ़ीठ निगाहों और दिल्ल्गीयों का डर नहीं होता। ..... ऐसा मकान जिसमे केवल औरतें रहती है एक ऐसा पवित्र स्थान है जिसकी मर्यादा भंग करने का ख्याल कोई अत्यंत निर्लज्ज , लम्पट स्वप्न में भी नहीं ला सकता। '
  86. अहल्या बाई ने इंदौर पर 1766 से 1796 तक शासन किया। 
  87. कुंचन नाम्बियार केरल का एक महान कवि था। 
  88. तायुमानवर (1706-1744 ) तमिल में सित्तर काव्य का एक उत्कृष्ट प्रवर्तक था। 
  89. पंजाबी के मशहूर  महाकाव्य , हीर -राँझा की रचना वारिश शाह ने अठरहवीं सदी में किया था। 
  90. सिंधी साहित्य के प्रमुख कवि अब्दुल लतीफ़ ने अपना प्रसिद्ध कविता संग्रह 'रिसालो ' की रचना अठरहवीं सदी में  ही किया था। सचल और सामी इस शताब्दी के अन्य महान सिंधी कवि थे.

भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद

भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद :-

भारत के मूल संविधान (1949 ) में एक प्रस्तावना , 395 अनुच्छेद , 22 भाग और 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान में एक प्रस्तावना , 465 अनुच्छेद , 25 भाग और 12 अनुसूचियाँ हैं। कुछ प्रमुख अनुच्छेद इस प्रकार हैं :- 

अनुच्छेद 1 .  इसमें संघ का नाम एवं राज्य क्षेत्र का विवरण है। 
अनुच्छेद 3 . इस अनुच्छेद के तहत नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों , सीमाओं या नामों में परिवर्तन किया जा सकता है 
अनुच्छेद 13. मूल अधिकारों को असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां 
अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता 
अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता 
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत 
अनुच्छेद 19 बोलने की स्वतंत्रता आदि विषयों के कुछ अधिकारों का संरक्षण 
अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण 
अनुच्छेद 21 क :- प्राथमिक शिक्षा अधिकार 
अनुच्छेद 25 अंतःकरण की  धर्म अबाध रूप से मानने , आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता 
अनुच्छेद 30 शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों को अधिकार 
अनुच्छेद 31 ग :- कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृति 
अनुच्छेद 32 :-मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए रिट सहित उपचार 
अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का गठन 
अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए एक  समान नागरिक संहिता 
अनुच्छेद 45 :-छह वर्ष से कम आयु वाले बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध 
अनुच्छेद 46 :-अनुसूचित जातियों , जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शिक्षा और  अर्थ सम्बन्धी हितों के अभिवृति 
अनुच्छेद 50:- कार्यपालिका से न्यायपालिका का अलग करना 
अनुच्छेद 51 :-अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि 
अनुच्छेद 51 क :- मौलिक कर्त्तव्य 
अनुच्छेद 72 :-क्षमा आदि की कुछ मामलों में , दंडादेश के निलंबन , परिहार या लधुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति 
अनुच्छेद 74 : राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद 
अनुच्छेद 110:धन विधेयक की परिभाषा 
अनुच्छेद 112 : वार्षिक वित्तीय विवरण 
अनुच्छेद 123 :संसद के  विशान्तिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति 
अनुच्छेद 143 :-उच्चतमअनुच्छेद 226 न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति 
अनुच्छेद 155 : राज्यपाल की नियुक्ति 
अनुच्छेद 161 :क्षमा आदि की और कुछ मामलों में , दंडादेश के निलंबन , परिहार्य , लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति 
अनुच्छेद 163 :राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद 
अनुच्छेद 167 : राज्यपाल को जानकारी देने आदि के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री का कर्तव्य 
अनुच्छेद 169 :राज्यों में विधानपरिषदों का उत्सादन या सृजन 
अनुच्छेद 200 :  विधेयकों पर अनुमति 
अनुच्छेद 213 : विधानमंडल के विश्रान्तिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल की शक्ति 
 :कुछ रिटें निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति 
अनुच्छेद 239 क क :- दिल्ली के सम्बन्ध में विशेष उपबंध 
अनुच्छेद 249 :राज्य सूचि के विषय के सम्बन्ध में राष्ट्रीय हित में क़ानून बनाने की संसद की शक्ति 
अनुच्छेद 262 :अंतरराज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल सम्बन्धी विवादों का न्याय निर्णय 
अनुच्छेद 263 :अंतराज्यीय परिषद् के सम्बन्ध  उपबंध 
अनुच्छेद 265 विधि के प्राधिकार के बिना करों  अधिरोपण न किया जाना 
अनुच्छेद 275 : कुछ राज्यों को संघ से अनुदान 
अनुच्छेद 2 8 0 : वित् आयोग 
अनुच्छेद 300 क :- विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को सम्पति से वंचित न किया जाना (सम्पति का अधिकार )
अनुच्छेद 311 : संघ या राज्य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्यक्तियों का पदच्युत किया जाना , पद से हटाया जाना या पदावनत किया जाना 
अनुच्छेद 312 :अखिल भारतीय सेवाएं 
अनुच्छेद 315 : संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग 
अनुच्छेद 320 : लोक सेवा आयोगों के कृत्य
अनुच्छेद 323 क :- प्रशासनिक अधिकरण 
अनुच्छेद 324 : निर्वाचनों के अधीक्षण , निर्देशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना 
अनुच्छेद 330 :-लोकसभा में अनुसूचित जातियों  और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण 
अनुच्छेद 335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के दावे 
अनुच्छेद 352 : आपात काल की घोषण (राष्ट्रीय आपातकाल )
अनुच्छेद 356 : संवैधानिक आपातकाल 
अनुच्छेद 360 : वित्तीय आपातकाल 
अनुच्छेद 368: संविधान  का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रतिक्रिया 
अनुच्छेद 370 : जम्मू काश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबंध  

भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद

भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद :-

भारत के मूल संविधान (1949 ) में एक प्रस्तावना , 395 अनुच्छेद , 22 भाग और 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान में एक प्रस्तावना , 465 अनुच्छेद , 25 भाग और 12 अनुसूचियाँ हैं। कुछ प्रमुख अनुच्छेद इस प्रकार हैं :- 

अनुच्छेद 1 .  इसमें संघ का नाम एवं राज्य क्षेत्र का विवरण है। 
अनुच्छेद 3 . इस अनुच्छेद के तहत नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों , सीमाओं या नामों में परिवर्तन किया जा सकता है 
अनुच्छेद 13. मूल अधिकारों को असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां 
अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता 
अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता 
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत 
अनुच्छेद 19 बोलने की स्वतंत्रता आदि विषयों के कुछ अधिकारों का संरक्षण 
अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण 
अनुच्छेद 21 क :- प्राथमिक शिक्षा अधिकार 
अनुच्छेद 25 अंतःकरण की  धर्म अबाध रूप से मानने , आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता 
अनुच्छेद 30 शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों को अधिकार 
अनुच्छेद 31 ग :- कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृति 
अनुच्छेद 32 :-मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए रिट सहित उपचार 
अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का गठन 
अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए एक  समान नागरिक संहिता 
अनुच्छेद 45 :-छह वर्ष से कम आयु वाले बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध 
अनुच्छेद 46 :-अनुसूचित जातियों , जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शिक्षा और  अर्थ सम्बन्धी हितों के अभिवृति 
अनुच्छेद 50:- कार्यपालिका से न्यायपालिका का अलग करना 
अनुच्छेद 51 :-अंतराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि 
अनुच्छेद 51 क :- मौलिक कर्त्तव्य 
अनुच्छेद 72 :-क्षमा आदि की कुछ मामलों में , दंडादेश के निलंबन , परिहार या लधुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति 
अनुच्छेद 74 : राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद 
अनुच्छेद 110:धन विधेयक की परिभाषा 
अनुच्छेद 112 : वार्षिक वित्तीय विवरण 
अनुच्छेद 123 :संसद के  विशान्तिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति 
अनुच्छेद 143 :-उच्चतमअनुच्छेद 226 न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति 
अनुच्छेद 155 : राज्यपाल की नियुक्ति 
अनुच्छेद 161 :क्षमा आदि की और कुछ मामलों में , दंडादेश के निलंबन , परिहार्य , लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति 
अनुच्छेद 163 :राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद 
अनुच्छेद 167 : राज्यपाल को जानकारी देने आदि के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री का कर्तव्य 
अनुच्छेद 169 :राज्यों में विधानपरिषदों का उत्सादन या सृजन 
अनुच्छेद 200 :  विधेयकों पर अनुमति 
अनुच्छेद 213 : विधानमंडल के विश्रान्तिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राज्यपाल की शक्ति 
 :कुछ रिटें निकालने की उच्च न्यायालय की शक्ति 
अनुच्छेद 239 क क :- दिल्ली के सम्बन्ध में विशेष उपबंध 
अनुच्छेद 249 :राज्य सूचि के विषय के सम्बन्ध में राष्ट्रीय हित में क़ानून बनाने की संसद की शक्ति 
अनुच्छेद 262 :अंतरराज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल सम्बन्धी विवादों का न्याय निर्णय 
अनुच्छेद 263 :अंतराज्यीय परिषद् के सम्बन्ध  उपबंध 
अनुच्छेद 265 विधि के प्राधिकार के बिना करों  अधिरोपण न किया जाना 
अनुच्छेद 275 : कुछ राज्यों को संघ से अनुदान 
अनुच्छेद 2 8 0 : वित् आयोग 
अनुच्छेद 300 क :- विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को सम्पति से वंचित न किया जाना (सम्पति का अधिकार )
अनुच्छेद 311 : संघ या राज्य के अधीन सिविल हैसियत में नियोजित व्यक्तियों का पदच्युत किया जाना , पद से हटाया जाना या पदावनत किया जाना 
अनुच्छेद 312 :अखिल भारतीय सेवाएं 
अनुच्छेद 315 : संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग 
अनुच्छेद 320 : लोक सेवा आयोगों के कृत्य
अनुच्छेद 323 क :- प्रशासनिक अधिकरण 
अनुच्छेद 324 : निर्वाचनों के अधीक्षण , निर्देशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना 
अनुच्छेद 330 :-लोकसभा में अनुसूचित जातियों  और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण 
अनुच्छेद 335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और जनजातियों के दावे 
अनुच्छेद 352 : आपात काल की घोषण (राष्ट्रीय आपातकाल )
अनुच्छेद 356 : संवैधानिक आपातकाल 
अनुच्छेद 360 : वित्तीय आपातकाल 
अनुच्छेद 368: संविधान  का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रतिक्रिया 
अनुच्छेद 370 : जम्मू काश्मीर राज्य के सम्बन्ध में अस्थायी उपबंध  

भारत में यूरोपीयों का आगमन


                                               भारत में यूरोपियों का आगमन 

भारत का यूरोप के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बहुत पहले से है, कहा जाता है की यह व्यापारिक सम्बन्ध यूनानियों के भारत आगमन से है। भारत का व्यापार दक्षिण -पूर्व एशिया और यूरोप के साथ मध्यकाल में अनेक मार्गों से हुआ करता था। भारत का माल यूरोप तक पहुचाने के लिए बहुत सारे देशों से होकर गुजरना पड़ता था लेकिन इस व्यापार में फायदा भी बहुत था।

उस्मानिया सल्तनत ने सन 1453 ईस्वी में एशिया माइनर को जीता और कुस्तुंतुनिया पर अधिकार कर लिया जिससे भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक मार्ग पर तुर्को का कब्ज़ा हो गया। इसके अलावा यूरोप और एशिया के व्यापारों पर जेनेवा और वेनिस के व्यापारियों का अधिकार था और वे यूरोप के और देशों जैसे स्पेन , पुर्तगाल इत्यादि को पुराने व्यापारिक मार्ग (जिसपर अब तुर्कों का कब्ज़ा हो गया था )से होने वाले व्यापार में शामिल नही करना चाहते थे , इसीलिए पश्चमी यूरोप के  व्यापारी भारत और इंडोनेशिया के एक द्वीप, स्पाइस आइलैंड , जो मसाले के लिए प्रसिद्ध था , के लिए नए और सबसे सुरक्षित समुद्री रास्ता की तलाश करने लगे।  उस समय स्पाइस आइलैंड को ईस्ट इंडीज कहा जाता था। पश्चमी यूरोप के देश के व्यापारियों को इस नए रस्ते खोजने का मकसद एशिया और यूरोप  के मध्य होने वाले व्यापार पर अरब और वेनिस के व्यापारियों के एकाधिकार को ख़त्म  करना , तुर्कों से शत्रुता नही लेना और पूर्व के देशों से व्यापार सम्बन्ध स्थापित करना था। 15 वीं सदी के आसपास व्यापारिक जहाजों का निर्माण होने लगा था और समुद्री व्यापार लोकप्रिय हो रहा था इसलिए पश्चमी यूरोप के देशों को समुद्री रास्तों के जरिये पूर्वी एशिया के देशों के साथ व्यापार करना कठिन नही  था। साथ ही साथ यूरोप में पुनर्जागरण के वहज से यूरोप के व्यापारी जोखिम भी उठाने को तैयार थे, और पहला जोखिम पुर्तगाल और स्पेन के व्यापारियों ने उठाया।  इन दोनों देशों के व्यापारी अपने अपने सरकार की मदद से भौगोलिक खोजों के एक युग की शुरुआत की। स्पेन के नाविक कोलम्बस 1494 ईस्वी में भारत की खोज में निकला परन्तु वह भटकर अमेरिका चला गया और इस प्रकार अमेरिका की खोज हुआ। 1498 ईस्वी में पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा भारत की खोज की।  वह केप ऑफ़ गुड होप होते हुए अफ्रीका का पूरा चक्कर लगाते हुए भारत के कालीकट (केरल ) पंहुचा। वास्को डी गामा जब भारत से लौटा तो अपने साथ बहुत सारे सामान खासकर मसाले लेकर गया जिसका कीमत उसके भारत आने में होने वाले खर्च से 60 गुना अधिक था।  धीरे धीरे और भी देशों की खोज हुए। इस प्रकार यूरोप के व्यापारियों के लिए एशिया से लेकर अमेरिका तक विशाल बाजार उपलब्ध था जिससे 17 वीं और 18 वीं सदी में विश्व व्यापार में काफी वृद्धि हुई।

                15 वीं सदी में यूरोपीय व्यापारियों ने अफ्रीका में प्रवेश किया तो उससे भी उनको आरंभिक पूंजी निर्माण का एक प्रमिख स्रोत प्राप्त हुआ।  शुरू में यूरोपीय व्यापारियों को अफ़्रीकी सोने और हाँथी दाँत ने आकर्षित किया परंतु जल्दी ही यूरोप द्वारा अफ्रीका से गुलामों का व्यापार शुरू हो गया  और कालांतर में गुलामों का व्यापार अफ्रीका के साथ व्यापार का प्रमुख भाग बन गया। 16 वीं सदी के अंत तक अफ्रीका के साथ होने वाले गुलामों के व्यापार पर पुर्तगाल और स्पेन का एकाधिकार था लेकिन बाद में इस व्यापार में फ़्रांसिसी , डच और अंग्रेजी व्यापारी हावी हो गए। यूरोप के व्यापारिक जहाज कारखानों का माल लेकर अफ्रीका पहुचते थे और इन्ही मालों से अफ्रीका के नीग्रो लोगों की अदला बदली करते थे , फिर इन दासों को लेकर अटलांटिक पार करते और वहाँ बागानों  की औपनिवेशिक पैदावार से  अदला -बदली करते ,  फिर इस माल को यूरोप के बाजार में बेच देते थे।  इस त्रिकोणीय व्यापार में व्यापारीयों को भारी लाभ था जिस पर इंग्लैंड और फ्रांस की व्यापारिक श्रेष्ठा स्थापित हुई। उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोपियों देशों की समृद्धि अधिकांशतः गुलामों के इसी व्यापार पर और गुलामों की मेहनत से चलने वाले बागानों पर निर्भर थी। दासों का व्यापार और दासों के मेहनत से चलने वाले बागानों से अर्जित की गयी पूँजी ही आगे चलकर 18 वीं और 19 वीं सदी की औद्योगिक क्रांति में काम आयी। इसके बाद यूरोपीय देशों द्वारा भारत को भिन्न भिन्न तरीकों से लुटा गया और जो दौलत प्राप्त हुई वो दौलत भी औद्योगिक क्रांति में बहुत काम आयी।

               जब यूरोपीय देशों को एशियाई और अफ़्रीकी देशों के साथ व्यापार में मोटा मुनाफा होने लगा तो यूरोपीय देशों को और लालच होने लगा और वे एशिया और अफ्रीका के देशों को अपने सैनिकों के बल पर हड़पने के कोशिश करने लगे. इसकी शुरुआत पुर्तगाल ने 16 वीं शताब्दी में की।

भारत में भी पुर्तगाल ने गोवा , कोचीन , दमन एवं दीव में अपने व्यापारिक  केंद्र खोल दिए। पुर्तगालियों ने शुरू से ही व्यापार के साथ शक्ति का प्रयोग किया। और वे सफल भी रहे क्योंकि उनके पास हथियारबंद समुद्री जहाज थे। उस समय भी भारत सहित एशिया की जमीनी सैनिक काफी कुशल थे लेकिन पुर्तगालियों ने अपने सभी व्यापारिक केंद्र समुद्र के निकट रखे थे इसलिए वे अपने व्यापारिक केंद्रों को अपने घातक हथियारबंद जहाज़ों की चलते बचाने में सफल रहे। उस समय भारत पर मुगलों का शासन था और मुगलों के पास कोई जलसेना नही था , इसी का फायदा पुर्तगालियों को मिला और वे अपने जलसेना का भय दिखाकर मुगलों से अनेक प्रकार की व्यापारिक छूट प्राप्त की।

पुर्तगालियों ने सन 1510 में गोवा पर अधिकार किया उस समय अल्फांसो -डी -अल्बुकर्क पुर्तगाली वायसराय था , उसने अपने विस्तारवादी नीति से फारस की कड़ी में स्थित हरमुज से लेकर मलाया में स्थित मलक्का और इंडोनशिया के स्पाइस आइलैंड तक कब्ज़ा कर लिया। अल्फांसो -डी -अल्बुकर्क अपने विस्तार वादी नीति को लेकर बहुत क्रूर था इसके लिए उसने कई लड़ाईया लड़ी।  उसने भारत के कई हिस्सों (दक्षिण भारत ) पर कब्ज़ा किया था , इस क्षेत्र में मुगलों का शासन नही था , इसलिए पुर्तगालियों को दक्षिण भारत में मुगलों का सामना नही  करना पड़ा।

पुर्तगाल एशिया में अपने व्यापारिक एकाधिकार को बहुत दिनों तक बनाये नही रख सका।  16 सदी के अंत में इंग्लैंड , फ्रांस , हॉलैंड इत्यादि जैसे व्यापारिक प्रतिद्वंदियों ने पुर्तगाल के एकाधिकार के खिलाफ एक कड़ा संघर्ष छेड़ दिया। इस संघर्ष में स्पेन और पुर्तगाल की हार हुई।  अब अंग्रेज और डच व्यापारी केप ऑफ़ गुड हॉप होकर भारत आने का रास्ता का प्रयोग करने लगे और पूर्वी देशों में अपना साम्राज्य बनाने की दौड़ में शामिल हो गए। और अंत में भारत , श्री लंका और मलाया पर अंग्रेजों और इंडोनेशिया पर डचों का अधिकार हो गया।

1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और डच संसद ने एक चार्टर स्वीकार करके कंपनी को युद्ध छेड़ने , संधिया करने , इलाके जीतने और किले बनाने के अधिकार दे दिए। डचों की दिलचस्पी भारत में नही बल्कि इंडोनेशिया ,  सुमात्रा और स्पाइस आइलैंड जैसे द्वीपों में थी जहाँ पर मसालों की पैदावार खूब होती थी। जल्दी ही डचों ने मलय जलडमरूमध्य और इंडोनेशियाई द्वीपों से पुर्तगालियों को खदेड़ दिया और 1623 में इन क्षेत्रों पर अधिकार करने का प्रयास कर रहे अंग्रेजों को हराया।

डचों ने भारत के बहुत सारे स्थान पर अपने व्यापारिक केंद्र खोले जिसमे गुजरात के सूरत , भड़ौच , कैबे और अहमदाबाद , मद्रास के नागपत्तनम , बिहार के पटना , उत्तरप्रदेश के आगरा , केरल के कोचीन , आंध्र प्रदेश के मसुलीपट्नम प्रमुख थे।  डचों ने 1658 में पुर्तगालियों से श्री लंका को छिना।

पुर्तगाली व्यापारियों की अपार सफलता को देखकर अंग्रेज व्यापारियों का लालच एशिया के प्रति और ज्यादा हो गया। 1599 में मर्चेंट एडवेंचर्स नाम से जाने जाने वाले कुछ व्यापाइयों ने पूर्व से व्यापार करने के लिए एक कंपनी बनायीं।  इस कंपनी को , जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी कहा जाता है , 31 दिसम्बर 1600 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने एक रॉयल चार्टर के द्वारा पूर्व से व्यापार करने का एकमात्र अधिकार दे दिया। 1608 में इस कंपनी ने भारत के सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।  उस समय व्यापारिक केंद्रों को फैक्ट्री के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कैप्टन हौकिंग्स को जहाँगीर के दरबार में शाही आज्ञा लेने के लिए भेज।  जिसके परिणामस्वरूप एक शाही फरमान के द्वारा भारत के पश्चमी तट की अनेक जगहों पर अंग्रेजों की फैक्टरियाँ खोलने की आज्ञा मिल गयी। परंतु इस छूट से अंग्रेज खुश नही थे , 1615 में अंग्रेजी दूत , सर टॉमस रो , मुग़ल दरबार में आया और सर टॉमस रो मुग़ल साम्राज्य के सभी भागों में व्यापार करने और फैक्टरियाँ खोलने का अधिकार देने वाला एक शाही फरमान जारी करवाने में सफल रहा। 1622 में जब ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने एक पुर्तगाली राजकुमारी से शादी की तो पुर्तगालियों ने उसे बम्बई का द्वीप दहेज में दे दिया।  अंततः दमन , दीव और गोवा को छोड़कर पुर्तगालियों के हाथ से भारत में उनके कब्जे वाल सारे इलाके निकल गए।
अब अंग्रेजों की नजर इंडोनेशिया की ओर गया जहाँ डचों का अधिकार था।  इंडोनेशिया के द्वीपों से हो रहे मसालों के व्यापार में भागीदारी को लेकर अंग्रेज कंपनी की डच कंपनी से ठन गयी और 1654 से दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो गयी और यह लड़ाई 1667 में तब समाप्त हुई जब अंग्रेजों ने इंडोनेशिया पर सारे दावे छोड़ दिए और बदले में डचों ने भारत की अंग्रेज बस्तियों को न छूने का वादा किया।

भारत में यूरोपीयों का आगमन


                                               भारत में यूरोपियों का आगमन 

भारत का यूरोप के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बहुत पहले से है, कहा जाता है की यह व्यापारिक सम्बन्ध यूनानियों के भारत आगमन से है। भारत का व्यापार दक्षिण -पूर्व एशिया और यूरोप के साथ मध्यकाल में अनेक मार्गों से हुआ करता था। भारत का माल यूरोप तक पहुचाने के लिए बहुत सारे देशों से होकर गुजरना पड़ता था लेकिन इस व्यापार में फायदा भी बहुत था।

उस्मानिया सल्तनत ने सन 1453 ईस्वी में एशिया माइनर को जीता और कुस्तुंतुनिया पर अधिकार कर लिया जिससे भारत और यूरोप के बीच व्यापारिक मार्ग पर तुर्को का कब्ज़ा हो गया। इसके अलावा यूरोप और एशिया के व्यापारों पर जेनेवा और वेनिस के व्यापारियों का अधिकार था और वे यूरोप के और देशों जैसे स्पेन , पुर्तगाल इत्यादि को पुराने व्यापारिक मार्ग (जिसपर अब तुर्कों का कब्ज़ा हो गया था )से होने वाले व्यापार में शामिल नही करना चाहते थे , इसीलिए पश्चमी यूरोप के  व्यापारी भारत और इंडोनेशिया के एक द्वीप, स्पाइस आइलैंड , जो मसाले के लिए प्रसिद्ध था , के लिए नए और सबसे सुरक्षित समुद्री रास्ता की तलाश करने लगे।  उस समय स्पाइस आइलैंड को ईस्ट इंडीज कहा जाता था। पश्चमी यूरोप के देश के व्यापारियों को इस नए रस्ते खोजने का मकसद एशिया और यूरोप  के मध्य होने वाले व्यापार पर अरब और वेनिस के व्यापारियों के एकाधिकार को ख़त्म  करना , तुर्कों से शत्रुता नही लेना और पूर्व के देशों से व्यापार सम्बन्ध स्थापित करना था। 15 वीं सदी के आसपास व्यापारिक जहाजों का निर्माण होने लगा था और समुद्री व्यापार लोकप्रिय हो रहा था इसलिए पश्चमी यूरोप के देशों को समुद्री रास्तों के जरिये पूर्वी एशिया के देशों के साथ व्यापार करना कठिन नही  था। साथ ही साथ यूरोप में पुनर्जागरण के वहज से यूरोप के व्यापारी जोखिम भी उठाने को तैयार थे, और पहला जोखिम पुर्तगाल और स्पेन के व्यापारियों ने उठाया।  इन दोनों देशों के व्यापारी अपने अपने सरकार की मदद से भौगोलिक खोजों के एक युग की शुरुआत की। स्पेन के नाविक कोलम्बस 1494 ईस्वी में भारत की खोज में निकला परन्तु वह भटकर अमेरिका चला गया और इस प्रकार अमेरिका की खोज हुआ। 1498 ईस्वी में पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा भारत की खोज की।  वह केप ऑफ़ गुड होप होते हुए अफ्रीका का पूरा चक्कर लगाते हुए भारत के कालीकट (केरल ) पंहुचा। वास्को डी गामा जब भारत से लौटा तो अपने साथ बहुत सारे सामान खासकर मसाले लेकर गया जिसका कीमत उसके भारत आने में होने वाले खर्च से 60 गुना अधिक था।  धीरे धीरे और भी देशों की खोज हुए। इस प्रकार यूरोप के व्यापारियों के लिए एशिया से लेकर अमेरिका तक विशाल बाजार उपलब्ध था जिससे 17 वीं और 18 वीं सदी में विश्व व्यापार में काफी वृद्धि हुई।

                15 वीं सदी में यूरोपीय व्यापारियों ने अफ्रीका में प्रवेश किया तो उससे भी उनको आरंभिक पूंजी निर्माण का एक प्रमिख स्रोत प्राप्त हुआ।  शुरू में यूरोपीय व्यापारियों को अफ़्रीकी सोने और हाँथी दाँत ने आकर्षित किया परंतु जल्दी ही यूरोप द्वारा अफ्रीका से गुलामों का व्यापार शुरू हो गया  और कालांतर में गुलामों का व्यापार अफ्रीका के साथ व्यापार का प्रमुख भाग बन गया। 16 वीं सदी के अंत तक अफ्रीका के साथ होने वाले गुलामों के व्यापार पर पुर्तगाल और स्पेन का एकाधिकार था लेकिन बाद में इस व्यापार में फ़्रांसिसी , डच और अंग्रेजी व्यापारी हावी हो गए। यूरोप के व्यापारिक जहाज कारखानों का माल लेकर अफ्रीका पहुचते थे और इन्ही मालों से अफ्रीका के नीग्रो लोगों की अदला बदली करते थे , फिर इन दासों को लेकर अटलांटिक पार करते और वहाँ बागानों  की औपनिवेशिक पैदावार से  अदला -बदली करते ,  फिर इस माल को यूरोप के बाजार में बेच देते थे।  इस त्रिकोणीय व्यापार में व्यापारीयों को भारी लाभ था जिस पर इंग्लैंड और फ्रांस की व्यापारिक श्रेष्ठा स्थापित हुई। उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोपियों देशों की समृद्धि अधिकांशतः गुलामों के इसी व्यापार पर और गुलामों की मेहनत से चलने वाले बागानों पर निर्भर थी। दासों का व्यापार और दासों के मेहनत से चलने वाले बागानों से अर्जित की गयी पूँजी ही आगे चलकर 18 वीं और 19 वीं सदी की औद्योगिक क्रांति में काम आयी। इसके बाद यूरोपीय देशों द्वारा भारत को भिन्न भिन्न तरीकों से लुटा गया और जो दौलत प्राप्त हुई वो दौलत भी औद्योगिक क्रांति में बहुत काम आयी।

               जब यूरोपीय देशों को एशियाई और अफ़्रीकी देशों के साथ व्यापार में मोटा मुनाफा होने लगा तो यूरोपीय देशों को और लालच होने लगा और वे एशिया और अफ्रीका के देशों को अपने सैनिकों के बल पर हड़पने के कोशिश करने लगे. इसकी शुरुआत पुर्तगाल ने 16 वीं शताब्दी में की।

भारत में भी पुर्तगाल ने गोवा , कोचीन , दमन एवं दीव में अपने व्यापारिक  केंद्र खोल दिए। पुर्तगालियों ने शुरू से ही व्यापार के साथ शक्ति का प्रयोग किया। और वे सफल भी रहे क्योंकि उनके पास हथियारबंद समुद्री जहाज थे। उस समय भी भारत सहित एशिया की जमीनी सैनिक काफी कुशल थे लेकिन पुर्तगालियों ने अपने सभी व्यापारिक केंद्र समुद्र के निकट रखे थे इसलिए वे अपने व्यापारिक केंद्रों को अपने घातक हथियारबंद जहाज़ों की चलते बचाने में सफल रहे। उस समय भारत पर मुगलों का शासन था और मुगलों के पास कोई जलसेना नही था , इसी का फायदा पुर्तगालियों को मिला और वे अपने जलसेना का भय दिखाकर मुगलों से अनेक प्रकार की व्यापारिक छूट प्राप्त की।

पुर्तगालियों ने सन 1510 में गोवा पर अधिकार किया उस समय अल्फांसो -डी -अल्बुकर्क पुर्तगाली वायसराय था , उसने अपने विस्तारवादी नीति से फारस की कड़ी में स्थित हरमुज से लेकर मलाया में स्थित मलक्का और इंडोनशिया के स्पाइस आइलैंड तक कब्ज़ा कर लिया। अल्फांसो -डी -अल्बुकर्क अपने विस्तार वादी नीति को लेकर बहुत क्रूर था इसके लिए उसने कई लड़ाईया लड़ी।  उसने भारत के कई हिस्सों (दक्षिण भारत ) पर कब्ज़ा किया था , इस क्षेत्र में मुगलों का शासन नही था , इसलिए पुर्तगालियों को दक्षिण भारत में मुगलों का सामना नही  करना पड़ा।

पुर्तगाल एशिया में अपने व्यापारिक एकाधिकार को बहुत दिनों तक बनाये नही रख सका।  16 सदी के अंत में इंग्लैंड , फ्रांस , हॉलैंड इत्यादि जैसे व्यापारिक प्रतिद्वंदियों ने पुर्तगाल के एकाधिकार के खिलाफ एक कड़ा संघर्ष छेड़ दिया। इस संघर्ष में स्पेन और पुर्तगाल की हार हुई।  अब अंग्रेज और डच व्यापारी केप ऑफ़ गुड हॉप होकर भारत आने का रास्ता का प्रयोग करने लगे और पूर्वी देशों में अपना साम्राज्य बनाने की दौड़ में शामिल हो गए। और अंत में भारत , श्री लंका और मलाया पर अंग्रेजों और इंडोनेशिया पर डचों का अधिकार हो गया।

1602 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई और डच संसद ने एक चार्टर स्वीकार करके कंपनी को युद्ध छेड़ने , संधिया करने , इलाके जीतने और किले बनाने के अधिकार दे दिए। डचों की दिलचस्पी भारत में नही बल्कि इंडोनेशिया ,  सुमात्रा और स्पाइस आइलैंड जैसे द्वीपों में थी जहाँ पर मसालों की पैदावार खूब होती थी। जल्दी ही डचों ने मलय जलडमरूमध्य और इंडोनेशियाई द्वीपों से पुर्तगालियों को खदेड़ दिया और 1623 में इन क्षेत्रों पर अधिकार करने का प्रयास कर रहे अंग्रेजों को हराया।

डचों ने भारत के बहुत सारे स्थान पर अपने व्यापारिक केंद्र खोले जिसमे गुजरात के सूरत , भड़ौच , कैबे और अहमदाबाद , मद्रास के नागपत्तनम , बिहार के पटना , उत्तरप्रदेश के आगरा , केरल के कोचीन , आंध्र प्रदेश के मसुलीपट्नम प्रमुख थे।  डचों ने 1658 में पुर्तगालियों से श्री लंका को छिना।

पुर्तगाली व्यापारियों की अपार सफलता को देखकर अंग्रेज व्यापारियों का लालच एशिया के प्रति और ज्यादा हो गया। 1599 में मर्चेंट एडवेंचर्स नाम से जाने जाने वाले कुछ व्यापाइयों ने पूर्व से व्यापार करने के लिए एक कंपनी बनायीं।  इस कंपनी को , जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी कहा जाता है , 31 दिसम्बर 1600 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने एक रॉयल चार्टर के द्वारा पूर्व से व्यापार करने का एकमात्र अधिकार दे दिया। 1608 में इस कंपनी ने भारत के सूरत में एक फैक्ट्री खोलने का निश्चय किया।  उस समय व्यापारिक केंद्रों को फैक्ट्री के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कैप्टन हौकिंग्स को जहाँगीर के दरबार में शाही आज्ञा लेने के लिए भेज।  जिसके परिणामस्वरूप एक शाही फरमान के द्वारा भारत के पश्चमी तट की अनेक जगहों पर अंग्रेजों की फैक्टरियाँ खोलने की आज्ञा मिल गयी। परंतु इस छूट से अंग्रेज खुश नही थे , 1615 में अंग्रेजी दूत , सर टॉमस रो , मुग़ल दरबार में आया और सर टॉमस रो मुग़ल साम्राज्य के सभी भागों में व्यापार करने और फैक्टरियाँ खोलने का अधिकार देने वाला एक शाही फरमान जारी करवाने में सफल रहा। 1622 में जब ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने एक पुर्तगाली राजकुमारी से शादी की तो पुर्तगालियों ने उसे बम्बई का द्वीप दहेज में दे दिया।  अंततः दमन , दीव और गोवा को छोड़कर पुर्तगालियों के हाथ से भारत में उनके कब्जे वाल सारे इलाके निकल गए।
अब अंग्रेजों की नजर इंडोनेशिया की ओर गया जहाँ डचों का अधिकार था।  इंडोनेशिया के द्वीपों से हो रहे मसालों के व्यापार में भागीदारी को लेकर अंग्रेज कंपनी की डच कंपनी से ठन गयी और 1654 से दोनों के बीच लड़ाई शुरू हो गयी और यह लड़ाई 1667 में तब समाप्त हुई जब अंग्रेजों ने इंडोनेशिया पर सारे दावे छोड़ दिए और बदले में डचों ने भारत की अंग्रेज बस्तियों को न छूने का वादा किया।

शिवाजी और उनके उत्तराधिकारी : प्रश्नोत्तरी

प्रश्न 01 शिवाजी के पिता का नाम क्या था ?

  1. रामदास
  2. कोंडदेव
  3. शाहजी भोंसले
  4. बाजीराव

प्रश्न 02 शिवाजी के माता का नाम क्या था ?

  1. जीजाबाई
  2. साईबाईं निम्बालकर
  3. रामबाई
  4. तुकाबाई

प्रश्न 03. शिवाजी का जन्म कब हुआ था ?

  1. 1625
  2. 1626
  3. 1627
  4. 1628

प्रश्न 04 . शिवाजी के दादाजी का नाम क्या था ?

  1. कोण्डदेव
  2. राजाराम
  3. रामदास
  4. साहूजी

प्रश्न 05. शिवाजी को अपने पिता की पूना का जागीर कब प्राप्त हुआ ?

  1. 1636
  2. 1637
  3. 1638
  4. 1639

प्रश्न 06 शिवाजी का जन्म कहाँ हुआ था ?

  1. पुरंदर
  2. शिवनेर
  3. पूना
  4. बीजापुर

प्रश्न 07 प्रारंभिक अवस्था में शिवाजी किससे सबसे ज्यादा प्रभावित थे ?

  1. औरंगजेब
  2. रामदास
  3. कोण्डदेव
  4. अकबर

प्रश्न 08 शिवाजी का वास्तविक विजय अभियान किस क्षेत्र को जितने के साथ शुरू चाहिए ?

  1. तोरण
  2. रायगढ़
  3. जावली
  4. पुरंदर

प्रश्न 09 शिवाजी ने जावली पर कब विजय प्राप्त किया ?

  1. 1656
  2. 1658
  3. 1660
  4. 1661

प्रश्न 10 शिवाजी ने किस शासक को हराकर जावली पर कब्ज़ा किया ?

  1. चन्दा राव मोरे
  2. जय सिंह
  3. आदिलशाही शासक
  4. शाईश्ता खान

प्रश्न 11. शिवाजी ने अफजल खान की हत्या कब किया ?

  1. 1660
  2. 1659
  3. 1663
  4. 1665

प्रश्न 12. शिवाजी की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए औरंगजेब ने किसको नियुक्त किया था ?

  1. शाइस्ता खान
  2. अफजल खान
  3. चन्दा राव मोरे
  4. राजाराम द्वितीय

प्रश्न 13 . शिवाजी ने शाइस्ता खान को कब नियुक्त किया ?

  1. 1663
  2. 1662
  3. 1661
  4. 1660

प्रश्न 14. शिवाजी ने सूरत को पहली बार कब लुटा ?

  1. 1664
  2. 1670
  3. 1656
  4. 1674

प्रश्न 15. औरंगजेब ने शिवाजी को पराजित करने के लिए किस राजा को नियुक्त किया था ?

  1. चन्दा राव मोरे
  2. अफजल खान
  3. राजा जय सिंह
  4. राजा इनायत खान

प्रश्न 16 पुरंदर की संधि कब हुई ?

  1. 1665
  2. 1668
  3. 1669
  4. 1670

प्रश्न 17. पुरंदर की संधि निम्नलिखित में किनके बीच हुआ था ?

  1. शिवाजी और औरंगजेब के बीच
  2. शिवाजी और दक्कन के गवर्नर के बीच
  3. शिवाजी और जय सिंह के बीच
  4. शिवाजी और आदिलशाह के बीच

प्रश्न 18. औरंगजेब ने शिवाजी को पराजित करने के लिए राजा जय सिंह को कब नियुक्त किया ?

  1. 1665
  2. 1667
  3. 1669
  4. 1670

प्रश्न 19 पुरन्दर के संधि के अनुसार शिवाजी को अपने कितने किले मुग़लों को सौपने पड़े थे ?

  1. 22
  2. 23
  3. 28
  4. 21

प्रश्न 20 शिवाजी को बंदी कब बनाया गया ?

  1. 1666
  2. 1667
  3. 1668
  4. 1669

प्रश्न 21 शिवाजी को किस जगह पर बंदी बनाया गया ?

  1. दिल्ली
  2. आगरा
  3. सिकंदरा
  4. रायगढ़

प्रश्न 22 शिवाजी ने सूरत को दुसरी बार कब लुटा ?

  1. 1665
  2. 1668
  3. 1670
  4. 1679

प्रश्न 23 शिवाजी का राज्याभिषेक कब हुआ था ?

  1. 1674
  2. 1673
  3. 1675
  4. 1678

प्रश्न 24 शिवाजी का राज्याभिषेक कहाँ हुआ था ?

  1. पूना
  2. रायगढ़
  3. पुरंदर
  4. जावली

प्रश्न 25. शिवाजी का राज्याभिषेक समारोह किस ब्राह्मण द्वारा सम्पन कराया गया ?

  1. रामदेव
  2. गंगाभट्ट
  3. रामदास
  4. कोंडदेव

प्रश्न 26 शिवाजी ने अपने राज्याभिषेक के समय कौन सी उपाधि ग्रहण किया ?

  1. विक्रमादित्य
  2. छत्रपति
  3. हिन्दू धर्मोद्धारक
  4. धर्मोरक्षक

प्रश्न 27 . मराठा साम्राज्य के संस्थापक कौन थे ?

  1. कोंडदेव
  2. रामदास
  3. शिवाजी
  4. शाहजी भोंसले

प्रश्न 28. शिवाजी का विवाह सईबाई निम्बालकर से कब हुआ ?

  1. 1639
  2. 1640
  3. 1641
  4. 1642

प्रश्न 29. निम्नलिखित में कौन सा संत का प्रभाव शिवाजी के आचरण पर पड़ा ?

  1. गुरु नामदेव
  2. गुरु रामदेव
  3. गुरु रामदास
  4. गुरु एकनाथ

प्रश्न 30. शिवाजी के दरबार में कौन सी भाषा प्रयोग में लायी जाती थी ?

  1. हिंदी
  2. सिंधी
  3. उर्दू
  4. मराठी

प्रश्न 31. शिवाजी की मृत्यु कब हुई थी ?

  1. 1682
  2. 1687
  3. 1680
  4. 1679

प्रश्न 32. शिवाजी के मंत्रिमंडल में सबसे प्रमुख पद किसको माना जाता था ?

  1. चिटनीस
  2. सुमंत
  3. पेशवा
  4. अमात्य

प्रश्न 33. शिवाजी के मंत्रिमंडल को क्या कहा जाता था ?

  1. मंत्रिमंडल
  2. अष्टप्रधान
  3. मण्डली
  4. सभा

प्रश्न 34. शिवाजी के उत्तराधिकारी का नाम क्या था ?

  1. साहूजी 
  2. शम्भाजी 
  3. राजाराम 
  4. शिवजी II 

प्रश्न 35. खेड़ा का युद्ध कब हुआ था ?

  1. 1705 
  2. 1707 
  3. 1710 
  4. 1711 

प्रश्न 36. खेड़ा का युद्ध निम्नलिखित में से किनके बीच लड़ा गया ?

  1. साहूजी और शम्भाजी के बीच 
  2. राजाराम और शिवजी II 
  3. शम्भाजी और ताराबाई के बीच 
  4. साहूजी और ताराबाई के बीच 

प्रश्न 37. शम्भाजी का उत्तराधिकारी कौन था ?

  1. ताराबाई 
  2. शिवाजी II 
  3. राजाराम 
  4. बाजीराव 

प्रश्न 38. राजाराम की  दुसरी राजधानी निम्नलिखित में से कहाँ थी ?

  1. पूना 
  2. सतारा 
  3. औरंगाबाद 
  4. नागपुर 

प्रश्न 39. राजाराम की पत्नी का नाम क्या था ?

  1. तुकाबाई 
  2. रामबाई 
  3. ताराबाई 
  4. यशोदाबाई 

प्रश्न 40. राजाराम के बाद उसका चार वर्षीय पुत्र मराठा साम्राज्य का उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ।  राजाराम के पुत्र का नाम क्या था ?

  1. बाजीराव I 
  2. शिवाजी II 
  3. बालाजी 
  4. साहू 

प्रश्न 41. दिल्ली पर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा कौन था ?

  1. बालाजी विश्वनाथ 
  2. शिवाजी 
  3. शिवाजी II 
  4. बाजीराव प्रथम 

प्रश्न 42. पालखेड़ा का युद्ध कब हुआ था ?

  1. 5 मार्च 1728 
  2. 6 मार्च 1728 
  3. 7 मार्च 1728 
  4. 8 मार्च 1728 

प्रश्न 43. पालखेड़ा का युद्ध निम्नलिखित में से किनके बीच हुआ था ?

  1. बाजीराव प्रथम और निज़ाम 
  2. बालाजी बाजीराव और अंग्रेज 
  3. बालाजी विश्वनाथ और निजाम 
  4. साहू और निज़ाम 

प्रश्न 44. बाजीराव प्रथम निम्नलिखित में से किसके मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त हुए थे ?

  1. साहू 
  2. शिवजी II 
  3. बालाजी विश्वनाथ 
  4. बालाजी बाजीराव 

प्रश्न 45. बाजीराव प्रथम की मृत्यु कब हुई ?

  1. 1740 
  2. 1741 
  3. 1742 
  4. 1743 

प्रश्न 46. प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध कब से कब तक चला ?

  1. 1775 -1786 
  2. 1776 -1782 
  3. 1775 -1782 
  4. 1777 -1782 

प्रश्न 47. प्रथम आँग्ल मराठा युद्ध शुरू होने का प्रमुख कारण कौन सी संधि था ?

  1. बड़गॉव की संधि 
  2. बसीन की संधि 
  3. सूरत की संधि 
  4. सालाबाई की संधि 

प्रश्न 48. प्रथम आँग्ल मराठा युद्ध किस संधि के द्वारा समाप्त हुआ ?

  1. बड़गॉव की संधि 
  2. बसीन की संधि 
  3. सूरत की संधि 
  4. सालाबाई की संधि 

प्रश्न 49. द्वितीय आँग्ल मराठा युद्ध कब हुआ ?

  1. 1803 -1805 
  2. 1800 -1805 
  3. 1806 -1808 
  4. 1804 -1806 

प्रश्न 50. तृतीय आँग्ल मराठा युद्ध कब हुआ ?

  1. 1814 -1816 
  2. 1816 -1818 
  3. 1815 -1817 
  4. 1815 -1818 

प्रश्न 51. मराठा साम्राज्य का अंतिम पेशवा कौन था ?

  1. बालाजी बाजीराव 
  2. शिवाजी II 
  3. बाजीराव I 
  4. बाजीराव II