परिचय
1857 ईस्वी के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किया जाने वाला अत्याचार से भारतीयों में क्रोध व्यापत हो गया और इसका परिणाम 1857 के विद्रोह के रूप में आया।
यधपि यह विद्रोह पूरी तरह सफल नही रहा लेकिन भारतीयों में राष्ट्रवादिता का उदय जरूर कर गया।
विद्रोह के प्रमुख कारण :-
(क ) भारतीय शासकों में शिकायतें :- लार्ड डलहौजी द्वारा अपनाये गए राज्य हड़प की नीति से बहुत सारे भारतीय रियासत को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। इनमें प्रमुख राज्य थे -झाँसी (1853 ई), जैतपुर (1849 ई )
उदयपुर (1852 ई ), नागपुर (1854 ई ), बघाट (1850 ई ), अवध (1856 ) इत्यादि। डलहौजी ने तंजौर के राजा और कर्नाटक के नबाव की उपाधि समाप्त कर दी और मराठा साम्राज्य के अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के मृत्यु (1851 )के बाद उसके पुत्र नाना साहब को पेंशन देने से साफ़ इंकार कर दिया। डलहौजी ने यह भी घोषणा करवाया की बहादुरशाह द्वितीय के उत्तराधिकारी को लालकिला छोड़ना होगा। डलहौजी द्वारा किये गए इन कार्यों से भारतीय शासकों में अंग्रेजों के प्रति नफरत पैदा होने लगी और यह 1857 के विद्रोह का कारण बना।
(ख )धार्मिक रूढ़िवादियों की शिकायतें :- हिन्दू तथा मुस्लिमों में ईसाई मशीनरियों को अंग्रेजों द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहन से काफी भय था और विगत वर्षों में अंग्रेजों द्वारा किये गए कुछ समाज सुधारक कार्य जैसे सती प्रथा की समाप्ति, नागरिक अधिकार की सुरक्षा आदि से रूढ़िवादियों के मन में असंतोष था।
(ग ) सिपाहियों की शिकायतें :- ब्रिटिश सेना में तैनात भारतीय सिपाहियों को वेतन तथा पदोन्नति में भेदभाव किया जाता था साथ ही साथ ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों को तरह तरह की पड़ताड़ना भी दी जाती थी और भारतीय सिपाहियों को पूरी तरह धार्मिक आजादी भी नही दी जाती थी , जिससे तंग आकर भारतीय सिपाहियों ने 1857 ई. से पहले कई बार विद्रोह कर चुके थे। इनमे प्रमुख थे :-
i . 1764 का सिपाही विद्रोह (बंगाल )
ii 1824 का सिपाही विद्रोह (बैरकपुर के 47 वें रेजिमेंट में )
iii 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री में विद्रोह (1844, 1849 ई. , 1850 ई. , 1852 ई. ) इत्यादि।
इन सभी विद्रोह को शक्ति के बल पर अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया जिससे भारतीय सैनकों में और नराजगी उत्पन्न हो गयी।
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण :- 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण अंग्रेजों द्वारा नयी एनफील्ड राइफल का प्रयोग जिसमे चर्बीदार कारतूस का उपयोग किया जाता था और यह चर्बी संभवतः गाय और सूअर के हुआ करते थे। इन कारतूसों को राइफल में डालने से पहले चर्बी को मुख से काट कर हटाना पड़ता था जिससे दोनों हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने धार्मिक आपत्ति जताई , परंतु अंग्रेजों ने कोई ध्यान नही दिया, जिससे इन सिपाहियों में गहरा असंतोष उत्पन्न हो गया। जिसके परिणामस्वरूप 26 फ़रवरी 1857 ई. को बहरामपुर बैरक के 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री के सिपाहियों ने चर्बीदार कारतूस को चलाने से मना कर दिया। इसके बाद बैरकपुर स्थित 34 वीं इन्फेंट्री के सिपाही मंगल पांडे ने 24 मार्च 1857 को बगावत कर दिया जिसके बाद अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया ,यह खबर जंगल के आग की तरह चारो तरफ फ़ैल गयी अंग्रेजों के खिलाफ आवाजें तेज हो गयी जिसके फलस्वरूप मेरठ और लखनऊ के सिपाही भी चर्बीदार कारतूस चलाने से इनकार कर दिए जिससे उनलोगों को भी जेलों में डाल दिया गया। इससे और माहौल खराब हो गया और यह पुरे देश में एक विद्रोह या क्रांति का रूप ले लिया।
महत्वपूर्ण केंद्र और उसके नेता :-
(क ) दिल्ली :- दिल्ली में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व बहादुर शाह द्वितीय तथा जनरल बख्त खान ने किया। दिल्ली में मई 1857 में विद्रोह हुआ था , इस विद्रोह को जॉन निकलसन द्वारा सिंतबर 1857 में दमन किया गया।
(ख ) कानपुर :- कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहब , तात्या टोपे , अजीमुल्लाह खान तथा राव साहेब ने किया। इस विद्रोह का दमन सर कॉलिन कैम्पबेल द्वारा किया गया।
(ग ) लखनऊ :- लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व हजरत महल (अवध की बेगम ) और अहमदुल्ला ने किया। लखनऊ के विद्रोह का दमन सर कॉलिन कैम्पबेल द्वारा 21 मार्च 1958 को किया गया।
(घ )बरेली :- बरेली में विद्रोह का नेतृत्व खान बहादुर खान द्वारा किया गया। इस विद्रोह का दमन 5 मई 1958 को सर कॉलिन कैम्पबेल द्वारा किया गया
(ङ )आरा :- आरा में बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह हुआ जिसे विलियम टेलर और विसेंट इअर द्वारा दमन किया गया।
1857 के विद्रोह का असफलता के कारण :- इस विद्रोह के असफल होने के कई निम्नलिखित कारण है
(क ) विद्रोहियों की कमजोरियां :- विद्रोहियों में संगठन , सफल योजना , अनुशासन , आधुनिक हथियार इत्यादि की कमी विद्रोह के असफलता का एक कारण बना।
(ख )इस विद्रोह में बॉम्बे , बंगाल , मद्रास , पंजाब , राजपूतानों ने भाग नही लिया और न ही शिक्षित भारतीय ने भाग लिया , जो विद्रोह के असफलता का कारण बना।
(ग )अंग्रेजों के पास विशाल सेना , आधुनिक हथियार , कुशल सैनिक और कुशल नेतृत्व था जो इस विद्रोह को सफल नही होने दिया।
1857 के विद्रोह का मूल्यांकन
1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी। इस आंदोलन में हिन्दू और मुस्लिमों ने कंधे से कन्धा मिलकर दुश्मनों से मुकाबला किया और एकता का मिसाल कायम किया। इस आंदोलन ने भारतीयों के मन में गहरा प्रभाव छोड़ा और भविष्य में एक शक्तिशाली आंदोलन करने का प्रेरणा प्रदान किया।
इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के नीतियों को फिर से विचार करने पर विवश कर दिया जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने छोटे छोटे राजाओं को भी संरक्षण देना प्रारम्भ कर दिया।
1857 के आंदोलन के परिणामस्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी का सीधा प्रभाव भारत में समाप्त हो गया और भारत में ब्रिटिश रानी के शासन का आगमन हुआ।
1857 ईस्वी के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर किया जाने वाला अत्याचार से भारतीयों में क्रोध व्यापत हो गया और इसका परिणाम 1857 के विद्रोह के रूप में आया।
यधपि यह विद्रोह पूरी तरह सफल नही रहा लेकिन भारतीयों में राष्ट्रवादिता का उदय जरूर कर गया।
विद्रोह के प्रमुख कारण :-
(क ) भारतीय शासकों में शिकायतें :- लार्ड डलहौजी द्वारा अपनाये गए राज्य हड़प की नीति से बहुत सारे भारतीय रियासत को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। इनमें प्रमुख राज्य थे -झाँसी (1853 ई), जैतपुर (1849 ई )
उदयपुर (1852 ई ), नागपुर (1854 ई ), बघाट (1850 ई ), अवध (1856 ) इत्यादि। डलहौजी ने तंजौर के राजा और कर्नाटक के नबाव की उपाधि समाप्त कर दी और मराठा साम्राज्य के अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के मृत्यु (1851 )के बाद उसके पुत्र नाना साहब को पेंशन देने से साफ़ इंकार कर दिया। डलहौजी ने यह भी घोषणा करवाया की बहादुरशाह द्वितीय के उत्तराधिकारी को लालकिला छोड़ना होगा। डलहौजी द्वारा किये गए इन कार्यों से भारतीय शासकों में अंग्रेजों के प्रति नफरत पैदा होने लगी और यह 1857 के विद्रोह का कारण बना।
(ख )धार्मिक रूढ़िवादियों की शिकायतें :- हिन्दू तथा मुस्लिमों में ईसाई मशीनरियों को अंग्रेजों द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहन से काफी भय था और विगत वर्षों में अंग्रेजों द्वारा किये गए कुछ समाज सुधारक कार्य जैसे सती प्रथा की समाप्ति, नागरिक अधिकार की सुरक्षा आदि से रूढ़िवादियों के मन में असंतोष था।
(ग ) सिपाहियों की शिकायतें :- ब्रिटिश सेना में तैनात भारतीय सिपाहियों को वेतन तथा पदोन्नति में भेदभाव किया जाता था साथ ही साथ ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों को तरह तरह की पड़ताड़ना भी दी जाती थी और भारतीय सिपाहियों को पूरी तरह धार्मिक आजादी भी नही दी जाती थी , जिससे तंग आकर भारतीय सिपाहियों ने 1857 ई. से पहले कई बार विद्रोह कर चुके थे। इनमे प्रमुख थे :-
i . 1764 का सिपाही विद्रोह (बंगाल )
ii 1824 का सिपाही विद्रोह (बैरकपुर के 47 वें रेजिमेंट में )
iii 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री में विद्रोह (1844, 1849 ई. , 1850 ई. , 1852 ई. ) इत्यादि।
इन सभी विद्रोह को शक्ति के बल पर अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया जिससे भारतीय सैनकों में और नराजगी उत्पन्न हो गयी।
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण :- 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण अंग्रेजों द्वारा नयी एनफील्ड राइफल का प्रयोग जिसमे चर्बीदार कारतूस का उपयोग किया जाता था और यह चर्बी संभवतः गाय और सूअर के हुआ करते थे। इन कारतूसों को राइफल में डालने से पहले चर्बी को मुख से काट कर हटाना पड़ता था जिससे दोनों हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों ने धार्मिक आपत्ति जताई , परंतु अंग्रेजों ने कोई ध्यान नही दिया, जिससे इन सिपाहियों में गहरा असंतोष उत्पन्न हो गया। जिसके परिणामस्वरूप 26 फ़रवरी 1857 ई. को बहरामपुर बैरक के 19 वीं नेटिव इन्फेंट्री के सिपाहियों ने चर्बीदार कारतूस को चलाने से मना कर दिया। इसके बाद बैरकपुर स्थित 34 वीं इन्फेंट्री के सिपाही मंगल पांडे ने 24 मार्च 1857 को बगावत कर दिया जिसके बाद अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया ,यह खबर जंगल के आग की तरह चारो तरफ फ़ैल गयी अंग्रेजों के खिलाफ आवाजें तेज हो गयी जिसके फलस्वरूप मेरठ और लखनऊ के सिपाही भी चर्बीदार कारतूस चलाने से इनकार कर दिए जिससे उनलोगों को भी जेलों में डाल दिया गया। इससे और माहौल खराब हो गया और यह पुरे देश में एक विद्रोह या क्रांति का रूप ले लिया।
महत्वपूर्ण केंद्र और उसके नेता :-
(क ) दिल्ली :- दिल्ली में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व बहादुर शाह द्वितीय तथा जनरल बख्त खान ने किया। दिल्ली में मई 1857 में विद्रोह हुआ था , इस विद्रोह को जॉन निकलसन द्वारा सिंतबर 1857 में दमन किया गया।
(ख ) कानपुर :- कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहब , तात्या टोपे , अजीमुल्लाह खान तथा राव साहेब ने किया। इस विद्रोह का दमन सर कॉलिन कैम्पबेल द्वारा किया गया।
(ग ) लखनऊ :- लखनऊ में विद्रोह का नेतृत्व हजरत महल (अवध की बेगम ) और अहमदुल्ला ने किया। लखनऊ के विद्रोह का दमन सर कॉलिन कैम्पबेल द्वारा 21 मार्च 1958 को किया गया।
(घ )बरेली :- बरेली में विद्रोह का नेतृत्व खान बहादुर खान द्वारा किया गया। इस विद्रोह का दमन 5 मई 1958 को सर कॉलिन कैम्पबेल द्वारा किया गया
(ङ )आरा :- आरा में बाबू कुँवर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह हुआ जिसे विलियम टेलर और विसेंट इअर द्वारा दमन किया गया।
1857 के विद्रोह का असफलता के कारण :- इस विद्रोह के असफल होने के कई निम्नलिखित कारण है
(क ) विद्रोहियों की कमजोरियां :- विद्रोहियों में संगठन , सफल योजना , अनुशासन , आधुनिक हथियार इत्यादि की कमी विद्रोह के असफलता का एक कारण बना।
(ख )इस विद्रोह में बॉम्बे , बंगाल , मद्रास , पंजाब , राजपूतानों ने भाग नही लिया और न ही शिक्षित भारतीय ने भाग लिया , जो विद्रोह के असफलता का कारण बना।
(ग )अंग्रेजों के पास विशाल सेना , आधुनिक हथियार , कुशल सैनिक और कुशल नेतृत्व था जो इस विद्रोह को सफल नही होने दिया।
1857 के विद्रोह का मूल्यांकन
1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी। इस आंदोलन में हिन्दू और मुस्लिमों ने कंधे से कन्धा मिलकर दुश्मनों से मुकाबला किया और एकता का मिसाल कायम किया। इस आंदोलन ने भारतीयों के मन में गहरा प्रभाव छोड़ा और भविष्य में एक शक्तिशाली आंदोलन करने का प्रेरणा प्रदान किया।
इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के नीतियों को फिर से विचार करने पर विवश कर दिया जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने छोटे छोटे राजाओं को भी संरक्षण देना प्रारम्भ कर दिया।
1857 के आंदोलन के परिणामस्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी का सीधा प्रभाव भारत में समाप्त हो गया और भारत में ब्रिटिश रानी के शासन का आगमन हुआ।
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